Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
कार्तवीर्य
प्राचीन चरित्रकोश
कार्तवीर्य
कार्तवीर्य-(सो. सह.) इसकी माता का नाम कार्तवीर्य राजमहल में नहीं है। यह इस समय नर्मदा पर राकावती (रेणु.१४)। शिवपूजाभंग होने के कारण यह स्त्रियों सहित क्रीडा करने गया था। आगे चल कर, रावण करविहीन जन्मा। मधु अगले जन्म में शिवशाप के कारण | विंध्यपर्वत पार कर नर्मदा तट पर गया। वहां स्नान कर कार्तवीय हुआ (रेणु. २८)।
शंकर की पूजा करने बैठा। इधर कार्तवीर्य ने सहज इसके लिये अर्जुन, सहस्रार्जुन तथा हैहयाधिपति लीलावश नदी का प्रवाह अपने सहस्र हाथों से रोक दिया। नामांतर प्राप्त है। यह सुदर्शन चक्र का अवतार है वह रुका हुआ पानी विविध दिशाओं में बहने लगा। इस (नारद. १.७६ )। कृतवीर्य के सौ पुत्र च्यवन के शाप | प्रकार का एक वेगवान प्रवाह रावण तक पहँचा। उससे से मृत हुए। केवल यह सप्तमी व्रतस्नान के कारण उस उसका पूजाभंग हो गया। इस प्रकार पूजाभंग करनेवाला शाप से मुक्त हुआ (मत्स्य. ६८)। कृतवीय ने संकष्टीव्रत। कार्तवीय है, यह समझते ही रावण ने इस पर आक्रमण करते समय जम्हाई दे कर उसके प्रायश्चित्तार्थ आचमन नहीं किया। परंतु इसने उसके मंत्रियों को हतवीयं कर दिया किया। गणेश के प्रसाद से चतुर्थीव्रत करने से उसे पुत्र तथा रावण को पकड लिया। अपना पौत्र पकड़ा गया. हुआ, परंतु उपरोक्त पापाचरण. के कारण इसे केवल दो ऐसा वर्तमान सुन कर पुलस्त्य ऋषि कार्तवीर्य के पास कंधे. मंह, नाक तथा आखें इतनी ही इंद्रियाँ थीं। यह देख आया। इसने उसका सम्मान किया तथा इच्छा पछी। कर इसके माता-पिता ने बहंत शोक किया। एक बार दत्त तब इसने रावण को छोड़ देने की प्रार्थना की। इसने उनके पास आये, तब उन्होंने उसे पुत्र दिखाया। उस आनंद से रावण को छोड़ दिया, तथा अग्नि के समक्ष एक समय यह बारह वर्ष का था। दत्त ने इसे एकाक्षरी मंत्र दूसरे से स्नेहपूर्वक व्यवहार करने की तथा पीडा न देने की बता कर. बारह वर्ष गणेश की आराधना करने के लिये प्रतिज्ञा की (वा.रा. उ. ३१-३३; विष्णु. ४.११; आ. कहा । इसने तदनुसार आराधना की, तब गणेश ने इसे रा. सार. १३; भा. ९.१५)। कार्नवीय ने नर्मदा के किनारे सुंदर शरीरयष्टि तथा सहस्र हाथ दिये । इसी कारण इसका खडे रह कर पांच बाण छोडे, जिससे लंकाधिपति रावण नाम सहस्रार्जुन हुआ (गणेश. १.७२-७३)। । मूर्छित हुआ। उसे धनुष्य से बांध कर यह माहिष्मती दत्तउपासना, वरप्राप्ति--कृतवीर्य के पश्चात् जब
के पास लाया। बाद में पुलस्त्य की प्रार्थनानुसार उसे छोड़ . अमात्य इसको राज्याभिषेक करने लगे, तब कार्तवीर्य ने
दिया (मत्स्य. ४३; ह. वं. १.३३; पद्म. सु. १२; ब्रह्म. गद्दी पर बैठना अस्वीकार कर दिया। इसे ऐसा लगता
| १३) । वंशावली के अनुसार रावण इसका समकालीन था कि, राजा के नाते कर का योग्य मोबदला अपने द्वारा
होना असंभव है । रावण व्यक्तिनाम न हो कर तामिल प्रजा को नहीं मिलेगा। इसे गर्गमुनि ने सह्याद्रि की
भाषा का Irivan या Iraivan शब्द का संस्कृत रूप होना गुहाओं में दत्त की सेवा करने की सलाह दी (मार्क.
चाहिये । इस शब्द का अर्थ हैं देव, राजा, सार्वभौम १६) । निष्ठापूर्वक एक हजार वर्ष तक दत्तात्रेय
अथवा श्रेष्ठ (JRA S. 1914, P 285)। रावण विशेषकी सेवा करने पर, इसे चार वर मिले:-१. सहस्रबाहू,
नाम समझा गया, इसलिये यह घोटाला हुआ। विष्णुपुराण २. अधर्मनिवृत्ति, ३. पृथ्वीपालन, ४. युद्धमृत्यु । इसने ।
की इस कथा में पुलस्त्य का नाम नहीं है (४.११)। कर्कोटक नाग से अनूप देश की माहिष्मती अथवा भोगावती । पृथ्वी जीत कर इसने बहुत यज्ञ किये (भा. ९.२३) नगरी जीती। यही वर्तमान ओंकार मांधाता है। वहाँ १०००० यज्ञ किये, सात सौ यज्ञ किये (ह.व. १.३३) मनुष्यों को बसा कर, इसने अपनी राजधानी बनायी। यों भी कहा गया है। उस समय इसे यज्ञ से एक दिव्य तदुपरांत कार्तवीय को दत्त तथा नारायण ने राज्याभिषेक | रथ तथा ध्वज प्राप्त हुआ (मत्स्य. ४३; ह. वं. १.३३; किया। उस समय समस्त देव, गंधर्व तथा अप्सरायें | मार्क. १७; पद्म. स. १२; अग्नि. २७५, ब्रह्म. १३; उपस्थित थीं (माक. १७)।
विष्णुधर्म. १.२३)। बाद में प्रजा को यह इतना दुख देने __ पराक्रम- थोडे ही समय में, इसने समस्त पृथ्वी जीत लगा, कि पृथ्वी त्रस्त हो गई। तब देवताएं विष्णु के ली, तथा यह उसका पालन करने लगा। इसने मारी नामक | पास गये तथा उन्होने सब कथा बताई । विष्णु ने उन्हे राक्षस का वध किया (नारद.१.७६)। इससे युद्ध करने के अभय दिया तथा कार्दवीय के नाशार्थ परशुरामावतार लिये रावण अपने मित्र शुक, सारण, महोदर, महापार्श्व तथा लेने का निश्चय किया। शंकर ने परशुराम को कार्तवीर्य धूम्राक्ष सहित आया था। उस समय ऐसा पता चला कि, संहार के लिये आवश्यक बल दिया (म. क. २४.
१३५