Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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कात्यायन
प्राचीन चरित्रकोश
काम
उसमें बयालीस श्लोक हैं। उसमें विशेष कर के | कापटव सुनीथ--सुतेमनस शांडिल्यायन का शिष्य स्वरभक्ति का ही विचार किया गया है (पारस्कर तथा | (वं. बा. १)। इसका पैतृक नाम कापटव था। वररुचि देखिये)।
__कापिलेय--विश्वामित्रपुत्र । शुनःशेप को विश्वामित्र ने २. राम के अष्ट धर्मशास्त्रियों में एक। .
मृत्यु से मुक्त करने के बाद अपनी गोद में लिया । ३. कबंधिन् देखिये।
शुनःशेप को उसका पिता अजीगत वापस मांगने लगा, ४. विश्वामित्र पुत्र कति का पुत्र ।
तब विश्वामित्र ने कहा कि, शुनःशेप मेरा पुत्र है तथा कात्यायनि-दक्ष कात्यायनि आत्रेय देखिये।
कापिलेय तथा बाभ्रव इसके बंधु हैं । इससे प्रतीत होता है
कि, यह तथा बाभ्रव, विश्वामित्र के पुत्रों में से होगे कात्यायनी--- याज्ञवल्क्य की दो स्त्रियों में से एक ।
(ऐ. ब्रा. ७.१७)। याज्ञवल्क्य का संसारत्याग का विचार पक्का होने के बाद, प्रपंचविषयक वस्तुओं का, मैत्रेयी तथा कात्यायनी में समान
। २. कुंभ को कपिला से उत्पन्न संतती का मातृक नाम विभाजक करने को उसने कहा। परंतु मैत्रेयी अध्यात्म
(ब्रह्मांड ३.७.१४५)। ज्ञान में पारंगत होने के कारण प्रापंचिक वस्तुएं
कापीपुत्र-आत्रेयीपुत्र का शिष्य । इसका शिष्य कात्यायनी के पास रही (बृ. उ.२.४.१; ४.५.१)।
वैयाघ्रपदीपुत्र (बृ. उ. ६.५.१२)। कात्यायनीपुत्र---गौतमीपुत्र तथा कौशिकीपुत्रं का
कापीय--व्यास के सामशिष्यपरंपरा का हिरण्यनाभ शिष्य । इसके शिष्य पाराशरीपुत्र तथा पौतिमाषीपुत्र | का शिष्य । थे (बृ. उ. ६.५.१) । जातूकर्ण्य नामक एक कात्यायनी- |
कापेय--एक ऋषि । चित्ररथ द्वारा द्वि-रात्र यज्ञ करके, पुत्र का आचार्य कह कर निर्देश है (सां. आ.८.१०)। | इसने उसे धनसंपन्न किया (क. स. १३.१२, पं. ब्रा. काद्रवेय-कद्रुपुत्र का मातृक नाम।.
२०.१२.५) कापेय का अर्थ है, कापेयी शाखा का . २. अर्बुद देखिये।
अध्ययन करनेवाले लोग (सां. श्री. ९.८:ज्योत्स्नाटीका)। काद्वापिंगाक्षि-कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । इसके
| शौनक ऋषि कपि गोत्र का होने के कारण, उसे. यह लिये काापिंगाक्षि पाठभेद है।
गोत्रनाम कह कर लगाया है (छां. उ. ४.३.५-७)।
कापोत--एक मुनि । उर्वशी तथा ककुत्स्थ की कानांध-वयश्व का पुत्र (बौ. श्री. २१.१०)।
कन्या चित्रांगदा इसकी पत्नी थी। इसके तुंबुरु तथा कानिनी--ब्रह्मांड मत में व्यास के साम शिष्यपरंपरा
सुवर्चस् नामक दो पुत्र थे । बाद में इसने कुबेर से द्रव्य के हिरण्यनाभ का शिष्य (व्यास देखिये)।
ला कर इन पुत्रों को दिया । चन्द्रशेखर राजा की पत्नी कानीत--पुथुश्रवस् का पैतृक नाम (ऋ. ८.४६.
| तारावती को दो वानरमुखी पुत्र होंगे, यों शाप इसने २१; २४) ..
दिया (कालि. ५३)। कानीन--(सू. दिष्ट.) भागवतमत में देवदत्तपुत्र ।
काप्य--कैशोर्य काप्य का शांडिल्य शिष्य । यह २. अग्निवेश्य, व्यास, कर्ण देखिये ।
कुमारहारित का शिष्य था (बृ. उ. २.६.३; ४.६.३)। कान्तिमती--भरतपुत्र पुष्कल की स्त्री (पद्म. पा. | पैल, पतंचल तथा पुरुकुत्स का काप्य यह पैतृक नाम है। १२)।
उसी प्रकार विभिंदुकीयों के सत्र में आविज्य करनेवाले २. वीरबाहु देखिये।
सेनक तथा नवक का भी यह पैतृक नाम है। ३. व्याधस्त्री (शंख देखिये)।
काबांध-यह अथर्वन् है । यह मांधाता के यज्ञ में कान्तिशालिन्-एक विद्याधर | पापनाशन लिंग के | गया तथा वहाँ यज्मान तथा ऋत्विज को इसने कुछ प्रश्न दर्शन से यह मुक्त हुआ (स्कन्द. १.३.२.४)। पूछे (गो. बा. १.२.९)। जलोद्भव अश्व से वेद डर गये।
कांदम-एक यावन् का पैतृक नाम (ते. ब्रा. २. | उस अश्व का शमन इसने किया (गो. बा. ९.१८)। ७.२१.२)। गांदम देखिये ।
विचारिन का यह पैतृक नाम है । कबंध का वंशज ऐसा कान्वायन--(शिशु. भविष्य.) मत्स्य के मतानुसार अर्थ हो सकता है (कबंध आथर्वण देखिये)। विध्यासेना का पुत्र।
काम--ब्रह्मदेव के हृदय से उत्पन्न पुत्र । इसकी पत्नी कापच्य-कायव्य देखिये ।
। रति । यह शंकर के तृतीय नेत्र से दग्ध हुआ परंतु रुक्मिणी १३३