Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्राचीन चरित्रकोश
कश्यप
वृषकंड, शांडिल्य, संयाति, हिरण्यबाहु ये असित, कश्यप तथा देवल इन त्रिप्रवरों के हैं ( मत्स्य. १९९ ) । कश्यपगोत्री मंत्रकार — असित, कश्यप, देवल, निध्रुव ( नैध्रुव), रैभ्य, तथा वत्सार । वायु में 'विक्षम' तथा मत्स्य में ' नित्य ' अधिक है ( ब्रह्माण्ड २.३२. ११२ - ११३; मत्स्य. १४५.१०६-१०७; वायु. ५९.१०२१०३) । ये ब्रह्मवेत्ता थे ।
ऋग्वेद में वत्सार के लिये अवत्सार, नैध्रुव के लिये निध्रुवि, इसके अतिरिक्त भूतांश, रेभ तथा वित्रि ये कश्यप माने गये है ।
कश्यप नैध्रुव -- एक आचार्य (बृ. उ. ६.५.३ ) । कश्यप मारीच -- ऋग्वेदमंत्रद्रष्टा (ऋ. १. ९९ ८. . २९; ९.६४;६७.४-६; ९१-९२; ११३ - ११४ ) । कषाय - एक शाखाप्रवर्तक ( पाणिनि देखिये ) | कहो वा कहोल कौषीतकेय — एक ऋषि । व्रीहि, यवादि नये अनाज वृष्टि से उत्पन्न होने के कारण, पहले देवताओं के लिये आग्रयण ( अर्थात अन्न का याग ) कर भक्षण करना चाहिये, यह रीति इसने आरंभ की। आश्वलायनगृह्यसूत्र में ब्रह्मयज्ञांगतर्पण में इसका नाम है। इसका कौषीतकेय नामान्तर भी मिलता है (बृ. .उ. ३.५.१ ) । यह याज्ञवल्क्य का समकालीन था (श. क्र. २.३.५१; सां. आ. १५; काहाडी देखिये ) |
काण्वायन
यह उद्दालक ऋषि का शिष्य था । इसने गुरुगृह में रह करं गुरु की उत्तम प्रकार से सेवा की, इसलिये गुरु ने प्रसन्न हो कर इसे अपनी कन्या सुजाता ब्याह दी। उसे . ले कर इसने गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया । सुजाता . गर्भवती हुई। एक बार यह अध्ययन कर रहा था, - तत्र सुजाता के गर्भ ने इसे अध्ययन न करने के लिये कहा । तत्र क्रोधित होकर इसने उस गर्भ को शाप दिया कि, तुम आठ स्थानों पर वक्र बनोगे । कुछ काल के बाद इसे अष्टावक्र नामक पुत्र हुआ। आगे चल कर, एकबार जब यह द्रव्ययाचना के लिये जनक राजा के पास गया, तत्र वरुणपुत्र बंदी ने अनेक ऋषियों को बाद में जीत कर पानी में डुबा दिया (म.व. १३४ ) । उस में यह भी डूब गया। वहाँ से इसके पुत्र ने, बंदी को बाद में के जीत कर वापस लाया (म. व. १३४-३१ ) । यह एक मध्यमाध्वर्यु है ।
काकवर्ण - ( शिशु. भविष्य . ) इसका पुत्र क्षेत्रधर्मन् । काकी – कश्यप तथा ताम्रा के कन्याओं में से एक । २. स्कन्द के शरीर से उत्पन्न मातृकाओं में से एक ।
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काकुत्स्थ - अनेन का पैतृक नाम ।
कायस्थ – कृष्णपराशर कुल का एक गोत्रकार । इसके लिये कार्केय पाठभेद है ।
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काक्षसेनि – अभिप्रतारिन् का पैतृक नाम ( दृति ऐन्द्रोत देखिये ) |
काक्षीवत-- दीर्घतमस् देखिये।
कांकायन -- एक ऋषि | शांत्युदक करते समय कौनसा मंत्र लिया जावे, इसके संबंध में इसका मत है ( कौ. सू. ९.१० ) ।
काचापि -- कारक देखिये |
कांचन -- च्यवन भार्गव का नामांतर ( वा. रा. उ. ६६.१७ ) ।
२. (सो. पुरूरवस्.) भागवत तथा विष्णु पुराण के मतानुसार यह भीमपुत्र है। वायु के मतानुसार भी भीमपुत्र ही है, परंतु वहाँ इसे कांचनप्रभ कहा गया है ।
कांचनमालिनी -- एक अप्सरा । प्रयाग में माघस्नान करने से यह मुक्त हुई ( पद्म. उ. १२७ ) ।
काट्य - अंगिरस कुल का गोत्रकार तथा प्रवर | कांठेविद्धि - एक आचार्य (वं. बा. २) कांडमायन -- विसर्गसंधि आवश्यक है, यो मत रखनेवाला आचार्य ( तै. प्रा. ९.१ ) ।
कांडराय -- पराशरकुल का एक गोत्रकार । कांड्रायन - एक व्याकरणकार। पदपाठ में प्लुत यह बतानेवाला, ऐसा इसका उल्लेख अनुनासिक शांखायन के साथ आया है ( तै. प्रा. १५.७ ) । कांड्डिय-- एक उद्गाता (जै. उ. ब्रा. ३.१०.२; जनश्रुत, नगरिन् तथा सायक देखिये) ।
काण्व -- स्वरविषयक मत बतानेवाला आचार्य ( शु. प्रा. १.१२३; १४.९) ।
२. वसिष्ठ गोत्री ऋषिगण ।
३. वायु के मत में, व्यास की यजुः शिष्यपरंपरा का याज्ञवल्क्य की शाखा में से एक ( व्यास देखिये) ।
( आयु, इरिंबिठ, कण्व, कुरुसुति, कुसीदिन्, कृषि, त्रिशोक, दवातिथि, नाभाक, नारद, नीपातिथि, पर्वत, पुनर्वत्स, पुष्टिगु, पृषत्र, प्रगाथ, प्रस्कण्व, ब्रह्मातिथि, मातरिश्वन्, मेधातिथि, मेध्य, मेध्यातिथि, वत्स, शशकर्ण, श्रुष्टिगु, सध्वंस, सुपर्ण, सोभरि, तथा सौश्रवस काण्व देखिये) ।
काण्वायन - अंगिराकुल का एक गोत्रकार । कृश ने काण्वायन के लिये प्रार्थना की है (ऋ. ८. ५५.४ ) ।