Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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कल्याण आंगिरस
प्राचीन चरित्रकोश
कशाय
देनेवाले एक साम का उपदेश इसे किया । तब कल्याण कवि-स्वायंभुव मन्वंतर के ब्रह्मपुत्र भृगु ऋषि के ने अंगिरसों को आ कर बताया कि, देवयानमार्ग प्राप्त कर तीन पुत्रों में कनिष्ठ । इसका पुत्र उशनाऋषि । यह सूक्तदेनेवाला साम मुझे प्राप्त हो गया है। वह मार्ग किस से प्राप्त द्रष्टा था (ऋ. ९.४७-४९; ७५-७९ म. आ. ६०.४०)। हुआ यह बताना इसने अमान्य कर दिया । उस और्णायुव । २. प्रियव्रत राजर्षि के बर्हिष्मति से उत्पन्न दस पुत्रों नामक साम से अंगिरसों को स्वर्गप्राप्ति हुई । परंतु में कनिष्ठ । यह बाल्यावस्था से विरक्त था (भा. ५.१)। असत्यकथन के कारण कल्याण को स्वर्गप्राप्ति नहीं हुई, ३. तामस मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक। बल्कि कोढ हो गया। और्णायव साम नाम के बदले कही। ४. रैवत मनु के दस पुत्रों में से पाँचवा । कही और्णायुव साम नाम दिया है। यह भी एक अंगिरस ५. (स्वा. प्रिय.) भागवत मत में ऋषभदेव तथा ही था (पं. ब्रा. १२.११.१०-११)।
जयंती के नौ सिद्धपुत्रों में ज्येष्ठ । कल्याणिनी--धर नामक वमू की स्त्री। इसे द्रविण । ६. वैवस्वत मनु के दस पुत्रों में कनिष्ठ। यह विरक्त अथवा रमण नामक पुत्र था।
हो कर अरण्य में गया (भा. ९.२)। २. एक अप्सरा । भीमद्वादशीव्रत करने के कारण यह । ७. भागवत मत में मनुवंशी यज्ञ तथा दक्षिणा का पुत्र । इन्द्रपत्नी शची बनी, तथा इसकी दासी ने जब यह व्रत । ८. वैवस्वत मन्वंतर के ब्रह्मा का पुत्र । इसे वारुणि किया तब वह कृष्णपत्नी सत्यभामा बनी (पद्म. सृ.२३)। कवि ऐसी संज्ञा थी। इसके कवि, काव्य, धृष्णु, उशनस्,
कवचिन्-धृतराष्ट्र पुत्र । भीम ने इसका वध किया | भृगु, विरजस्, काशि तथा उग्र नामक. आठ पुत्र थे (म. क. ६२.५)।
(म. अनु. ८५.३३)। कबष--एक स्मृतिकार । कवषस्मृति का निर्देश ९. ब्रह्मपुत्र वारुणि कवि के आठ पुत्रों में ज्येष्ठ (म. पराशरस्मृतिव्याख्या में है (C.C.)
अनु. ८५.३३)। ___२. एक आचार्य। युधिष्ठिर के राजसूययज्ञ में यह १०. (सो. पूरू.) दुरितक्षय का मँझला पुत्र । यह होता नामक ऋत्विज था (भा. १०.७४.७ )। | तप से ब्राह्मण हुआ (भा. ९.२१.१९)। कवष ऐलूष--सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.३१-३३)। यह
११. कौशिक ऋषि के सात पुत्रों में से एकः (पितृकुरुश्रवण का उपाध्याय था (ऋ. १०.३२.९)।
वर्तिन् देखिये) ___ इलूषपुत्र कवष सरस्वती के किनारे अंगिरसों के। १२. कृष्ण का कालिंदी से उत्पन्न पुत्र । सत्र में आया, तब शूद्रापुत्र, अब्राह्मण एवं जुआड़ी
१३. कृष्ण का एक प्रपौत्र । यह महारथी था। कह कर इसे यज्ञ के लिये अयोग्य घोषित किया । तथा
१४. स्वारोचिष मन्वंतर का एक देव । जंगल में इसे छोड़ कर ऐसी व्यवस्था की गई कि,
। १५. शिव के श्वेत नामक दो अवतार हुए । उन में इसे पानी भी प्राप्त न हो। परंतु अपोनप्त्रीय सूक्त कहने | से दूसरे का शिष्य । . के कारण, सरस्वती स्वयं इसकी ओर मुड़ गई। अभी भी कविरथ-(सो. पूरु. भविष्य.) भागवत मतानुसार उस स्थान को परिसारक नाम हैं। ऋषियों ने बाद में चित्ररथ का पुत्र । मस्य में शुचिद्रव, वायु में शुचिद्रथ, इसका महत्त्व जान कर इसे वापस बुलाया (ऐ. बा.| तथा विष्णु में शुचिरथ, यों पाठभेद है। २.१९; सां. बा. १२.१-३)। सांख्यायन ब्राह्मणों में यह | कव्यवाह-पितरविशेष । ब्रह्मदेव की मानसकन्या अब्राह्मण था, इसीलिये इसे यज्ञ से निकाल दिया, ऐसा | संध्या को देख कर, दक्षादि मोहित हुए । उनके अंगों से स्पष्ट लिखा है। तृत्सुओं के लिये इन्द्र ने कवषादिकों | निकले स्वेदबिंदुओं से इनकी उत्पत्ति हुई । इन में सोमप, का पराभव किया तथा उनके मजबूत किले उध्वस्त कर | आज्यप, स्वकालीन आदि भेद हैं । क्रतु के पुत्र सोमप, दियो (ऋ.७.१८.१२)। इसके सूक्त में कुरुश्रवण, | वसिष्ठ के पुत्र खधावत् तथा पुलत्य के पुत्र आज्यप ये उपमश्रवस् तथा मित्रातिथि का निर्देश है (ऋ१०.३२- सब हविर्भागी हैं। नरक को इसने नारद की जानकारी बताई ३३)। मित्रातिथि की मृत्यु से दुखी उपमश्रवस् का । (दे. भा. ११.१५)। कव्य के माने पितरों को दिया समाचार पूछने के लिये यह आया था।
गया अन्न । उसे पितरों तक पहुंचाने वाले को कन्यवाह कवषा-एक ऋषिपत्नी । तुर ऋषि की माता | कहते हैं (पितर देखिये)। (तुर देखिये)।
___ कशाय-एक शाखाप्रवर्तक (पाणिनि देखिये)। १२६