Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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कर्ण
प्राचीन चरित्रकोश
कर्ण
ने दयोधन को वचन दिया है कि, मैं उससे आमरण | तथा अश्वत्थामा को मर्मभेद्य भाषण से दुखाया। झगड़ा मित्रत्व रखूगा। इस परिस्थिति के कारण पांडवों के | बहुत बुरी तरह हुआ था, परंतु ले दे कर दुर्योधन ने सब पक्ष में आना मेरे लिये अनुचित है। यह सुन कर कृष्ण | को समझाया (म. वि. ४३-४६)। इसने द्रपदपुत्र निरुत्तर हो गया (म. उ. १३९)।
प्रियदर्शन का वध किया था (म. आ. १९२, परि.१०३ - भेंट-कुंती स्वयं कर्ण से मिलने गई, तथा पुत्र | पंक्ति. १३३)। ऋह कर अपना परिचय उसे दिया। तब प्रथम बताये दिग्विजय--चित्रसेन गंधर्व से दुर्योधन की रक्षा पांडवों अनुसार सारा वृत्त कथन कर के, पांडवों का पक्ष लेना ने की इसका स्मरण दिला कर, भीष्म ने पांडवों के साथ उसने साफ अमान्य कर दिया । परंतु कुंती के कथना- मेल करने के लिये दुर्योधन से कहा। तब दुर्योधन केवल नुसार वचन दिया कि, मैं केवल अर्जुन से युद्ध कर के | हँसा। अपना अजिंक्यत्व सिद्ध कर के भीष्मादिकों का उसका वध करुंगा, अन्य पांडवों को में.हानि नहीं पहुंचा- | मुँह हमेशा बंद करने के लिए, योग्य मुहर्त देख कर, कर्ण ऊँगा । यह सुन कर कुंती वापस चली गई (म. उ. | दिग्विजय के लिये निकला । प्रथम द्रुपदनगर को घेरा डाल १४४)।
कर द्रुपद तथा उसके अनुयायियों को जीत कर, इसने उनसे द्रोणवध के बाद कर्ण सेनापति हुआ। तब महासमर कर लिया। तदनंतर यह उत्तर की ओर गया। प्रथम की आज्ञा मांगने के लिये कर्ण भीष्म के पास गया। भगदत्त को जीत कर, हिमवान् पर्वतीय राजाओं को उस समय भीष्म ने इसे इसका जन्मवृत्त कथन कर, युद्ध | भी इसने जीता तथा करभार लिया । तदनंतर पूर्व की से परावृत्त करने का प्रयत्न किया । परंतु कर्ण ने उसकी | ओर नेपाल, अंग, वंग, कलिंग, शंडिक, मिथिल, मागध, बात न सुनी। इसी समय कर्ण ने भूतकाल में किये गये कर्कखंड, आवशीर, योध्य, अहिक्षत्र, वत्सभूमि, मृत्तिअपने कृत्यों के लिये, भीष्म से क्षमायाचना की (म. कावती, मोहननगर, त्रिपुरी तथा कोसला नगरी जीत भी. ११७)।
कर करभार लिया । अनंतर दक्षिण की ओर कुंडिनपूर . गंधर्वयुद्ध-कौरव घोषयात्रा के लिये गये थे, तब के रुक्मी के साथ युद्ध किया। युद्ध में कर्णप्रभाव से . कर्ण भी उनके साथ गया था । वहाँ चित्रसेन गंधर्व संतुष्ट होकर वह शरण में आया तथा कर्ण के साथ उसकी
के साथ दुर्योधन का युद्ध हो कर उसमें प्रथम कर्ण ने सहायता करने के लिये गया। पांड्य, शैल, केरल तथा । गंवों का पराभव किया। परंतु बाद में संपूर्ण सेना ने | नील प्रदेश जीत कर, कर प्राप्त किया। तदनंतर शैशुपालि उसी पर आक्रमण किया एवं उसे भग्नरथ कर के विकर्ण . को जीत कर, पार्श्व तथा अवंती प्रदेश के सब राजाओं को
के रथ में बैठ कर भागने के लिये मजबूर किया (म. व. जीता । बाद में कर्ण पश्चिम की ओर गया । वहाँ यवन .. २३१)।
तथा बर्बरों को जीत कर उसने कर लिया। इस प्रकार विराटनगरी में-पांडव अज्ञातवासकाल में जब विराट | सब दिशाओं को जीतने के बाद, कर्ण ने म्लेच्छ, अरण्यके पास रहते थे, तब दुर्योधन ने विराट नगरी पर | वासी तथा पर्वतवासी राजा, भद्र, रोहितक, आग्रेय,
आक्रमण किया। कीचक की मृत्यु के कारण, उस समय मालव आदि का पराभव किया। तदनंतर शशक तथा विराट अत्यंत निर्बल हो गया था । दुर्योधन को कर्ण, | यवनों का पराभव कर के, नमजित् प्रभृति महारथी संशप्तक, वीर सुशर्मा आदि की सहायता प्राप्त थी. फिर | नृपसमुदाय को जीता। भी इस युद्ध में दुर्योधन का पूर्ण पराभव हुआ। इस युद्ध इस प्रकार संपूर्ण पृथ्वी पादाक्रान्त कर के, कर्ण हस्तिनामें कर्णार्जुन का तुमुल युद्ध हुआ, जिस में कर्ण का पूर्ण | पुर आया । वहाँ उसका उत्तम स्वागत हुआ। इस पराभव हो कर उसके भाई शत्रुतप का वध अर्जुन ने अपूर्व विजय के कारण दुर्योधनादि को लगा कि, किया (म. वि.५६)। यह लड़ाई उत्तरगोग्रहण के युद्ध में कर्ण अवश्य ही पांडवों को पराजित कर देगा नाम से प्रसिद्ध है । इसी युद्ध में विराट की एक लक्ष (म. व. २४१. परि. १.२४)। जब दुर्योधन ने गौएं सुशर्मा ने ले ली थीं (म. वि. ४९-५५) स्वयंवर में कलिंग के चित्रांगद की कन्या का राजपुर से
कृपाचार्य से सामना--कर्ण ने अर्जन का पराभव करने हरण किया तब कर्ण ने उस की रक्षा की (म. शां.४)। की प्रतिज्ञा की, परंतु कृपाचार्य ने उसका निषेध किया। राज्यविस्तार- दुर्योधन की कृपा से कर्ण अंगदेश का कर्ण ने बदले में उसका उपहास किया तथा कृपाचार्य | राजा बन सका । उस देश की सीमाएँ निम्नलिखित हैं ।
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