Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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कर्ण
प्राचीन चरित्रकोश
कर्णिरथ
का सारथि था। तब दुर्योधन ने शल्य को कर्ण का सारथ्य करना ही श्रेयस्कर है। इस प्रकार कर्ण बडे ही संकट में करने के लिये कहा। इससे क्रोधित हो कर शल्य ने कहा | फँस गया। इसने एक हाथ से पहिया उठाते ही, भूमि चार • कि, मैं युद्ध छोड़ कर चला जाऊँगा । वह कौरवों का ज्येष्ठ अंगुल ऊपर उठाई गई परंतु पहिया नहीं निकला। दूसरे
आप्त तथा राजा था । कण का जन्मवृत्त किसी को मालूम | हाथ से यह अर्जुन से लड़ रहा था। इस प्रकार व्यस्त न होने के कारण, उसे सब सूत पुत्र कह कर ही जानते | अवस्था में अर्जुन ने इस का वध किया। इस युद्ध में धर्म, थे। इस लिये हीन कुलोत्पन्न का सारथ्यकर्म करना इसे भीम तथा नकुल का पराभव कर के, कर्ण ने उन्हें छोड़ अपमानास्पद प्रतीत हुआ। परंतु कर्ण के समान शल्य | दिया था (म. क. ६३.६६-६७)। भी दुर्योधन के लिये तन-मन-धन खर्च करने वाला था। परिवार--कर्ण की मृत्यु से गांधारी को अत्यंत दुःख इसलिये यह कार्य भी उसने मान्य कर लिया। परंतु | हुआ (म. स्त्री. २१)। इसके छः पुत्र इस युद्ध में मारे 'सारथ्य के समय उचित प्रतीत हो, सो मैं बोलूँगा तथा गये । उनमें से सुबाहु तथा वृषसेन का वध अर्जुन ने, एवं उसे कर्ण को सहना ही पड़ेगा, यों शर्त इसने रखी | सत्यसेन, चित्रसेन तथा सुषेण का वध नकुल ने किया (म. क. २३. ५३; २५.६)।
(म. क. ६२-६३; श. ९)। ___ कर्ण के सैनापत्य में घनघोर युद्ध शुरू हुआ। भीष्म, | कर्ण के छः भाइयों का वध इस युद्ध में हुआ। उनमें द्रोणादि के प्रहारों से पांडवों की जो आधी सेना बची | से शत्रुजय, शत्रुतप तथा विपाट का वध अर्जुन ने किया , थी, उन में से आधी इसने नष्ट कर दी । द्रौपदी की | (म. वि. ४९; क. ३२)। एक का वध अभिमन्यु ने अप्रतिष्ठा के कारण, इसे मन ही मन काफी पश्चात्ताप हो | किया (म. द्रो. ४०. ४)। द्रुम तथा वृकरथ का वध रहा था। परंतु जिसका नमक खाया है, उसकी ईमान- | भीम ने किया (म. द्रो. १३०. २३. १३२. १८)। दारी से नौकरी करने के लिये, भीष्म द्रोणदिकों के समान | अर्जुन ने कर्ण का वध किया, इस लिये धर्मराज ने इसे भी युद्ध के लिये सज्ज होना पड़ा। युद्ध के प्रारंभ | अर्जुन को बधाई दी (म. क. ६९)। परंतु आगे चलमें शल्य ने अपनी शर्त का काफी उपयोग कर लिया । | कर कुंती ने बताया कि, कर्ण उसका पुत्र था (म. स्त्री. हर प्रकार से अर्जुन का शौर्य तथा बल इनका वर्णन कर, | २७. ७-१२)। इससे पांडवों को अत्यंत दुख हुआ। उसने कहा कि, अर्जुन के समक्ष तुम टिक नहीं सकते । इसी समय धर्मराज ने शाप दिया कि, स्त्रियों के मन में परंतु भयंकर युद्ध में मग्न होते हुए भी, इस प्रकार धैर्य | कुछ मी गुप्त नहीं रहेगा (म. शां. ६.१०)। भविष्य'गलित करने वाला भाषण सुन कर, कर्ण नहीं घबराया। पुराण में लिखा है कि, कर्ण आगे चल कर तारक नाम से इसने खरे खरे उत्तर दे कर उसे चुप कर दिया (म. / जन्म लेगा (भवि. प्रति. ३.१)। क. २६-२७)। किंतु इसके पश्चात् शल्य ने इसे प्रोत्सा- २. कश्यपगोत्रीय ऋषि । इन दिया (म. क. ५७.६२)।
कर्णक-अत्रिकुलोत्पन्न एक ब्रह्मर्षि (अत्रि देखिये )।
| यह मंत्रकार था (मत्स्य. १४५. १०७-१०८)। . मृत्यु--युद्ध चालू रहते समय, कर्ण का पुत्र वृष- |
कर्णजिह्व--अत्रिगोत्रीय ऋषिगण ।। सेन मारा गया (म. क. ६२.६०)। इससे इसे अपरिमित दुख हुआ, तथा यह त्वेष से लड़ने लगा। इस
__ कर्णवेष्ट-पांडवपक्षीय एक राजा (म. उ. ४. प्रकार कर्णार्जुन का घनघोर युद्ध प्रारंभ हो गया। उस
२०)। समय पीछेवर्णित शाप के समान इसकी स्थिति होने लगी।
| कर्णश्रवस् आंगिरस-सामद्रष्टा (पं. ब्रा. १३. ब्रह्मास्त्र का स्मरण यह न कर सका । इसके रथ का पहिया
| ११. १४-१५). भूमि में फंस गया । तब लाचार हो कर यह रथ के नीचे
___ कर्णश्रुत् वासिष्ठ-मंत्रद्रष्टा (ऋ. ९. ९७. २२उतरा, तथा पहिया उठाने का प्रयत्न करने लगा।
| २४)। इस प्रसंग में युद्ध असंभव था, अतः इसने अर्जुन
कर्णिका--एक अप्सरा। को कुछ देर रुकने के लिये कहा । परंतु कृष्ण ने अर्जुन
२. (सो. वृष्णि.) वसुदेवबंधु कंक की पत्नी। इसे से कहा कि, केयल इसी स्थिति में कर्ण का वध होना
ऋतुधामन् तथा जय नामक पुत्र थे। • संभव है, अन्यथा असंभव है। तदनंतर कर्ण के दुष्कृत्यों कर्णिकार-जटायु के पुत्रों में से एक। का स्मरण दिला कर कृष्ण ने कहा कि, तुम्हारा वध | कर्णिरथ-अत्रिकुल का एक गोत्रकार । प्रा. च. १६]
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