Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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कर्ण
प्राचीन चरित्रकोश
भागलपूर तथा उसके आसपास का मोंगीर प्रदेश मिला | सलाह देता हूँ, फिरभी तुम नहीं मानते, तो कम से कर अंगदेश बना था। भारत के अठारह राजकीय भागों | कम इन्द्र से एक शक्ति मांग लो।" कर्ण ने यह मान्य में यह एक था । चंपा अथवा चंपापुरी उसकी राजधानी कर लिया तथा वह इन्द्र की प्रतीक्षा करने लगा थी । इस राज्य की उत्तर मर्यादा का पश्चिम छोर गंगा तथा (म. व. २८४-२९४)। शरयू का संगम था। यह रामायण के रोमपाद का तथा | शक्तिप्राप्ति--एक दिन इन्द्र ब्राह्मणरूप में कर्ण के भारत के कर्ण का राज्य था। रामायण में उल्लेख है कि,
पास आया। उस समय कर्ण जप कर रहा था। उस यही महादेव ने मदन को मारा। इसलिये इस देश को | समय इन्द्र ने उसके कवचकुंडल माँगे। कर्ण उदार अंग तथा मदन को अनंग नाम मिला (वा. रा. बा. था। किसी भी ब्राह्मण ने कुछ भी माँगा हो, उसे वह २३.१३-१४) । अंगदेश में वीरभूम तथा मुर्शिदाबाद वस्तु अवश्य देता था । कर्ण ने तत्काल इन्द्र से हाँ कहा। जिले आते हैं । कुछ तज्ञों के मतानुसार संताल परगना | यह कवच त्वचा से संलग्न होने के कारण, उसको निकाल भी आता है । महाभारत में लिखा है कि, यह देश
ते समय त्वचा का छिल जाना अवश्यंभावी था । फिर भी इन्द्रप्रस्थ के पूर्व की ओर दूर स्थित मगध देश के इस | कर्ण विचलित नहीं हुआ। उसने तत्काल उन्हें निकाल
ओर है। राजसूय के दिग्विजय में भीम ने कर्ण का यहाँ कर इन्द्र को दे दिया। तब इन्द्र अत्यंत आश्चर्यचकित पराजय किया (म. स. २७.१६-१७)। अंगदेश का नाम
हुआ तथा प्रसन्न हो कर उसने एक अमोघ शक्ति कण को सर्वप्रथम अथर्ववेद में आया है (अ. वे. ५. १४ )।
दी तथा कहा कि, जिस पर तुम यह शक्ति फंकोगे, उसकी औदार्य--अंगराज कर्ण उस समय अत्यंत प्रसिद्ध धनु- तत्काल मृत्यु हो जावेगी । इतना कह कर इन्द्र गुप्त हो र्धर था । यह मानी हुई बात थी, कि भविष्य में यह कौरव
गया । कवचकुंडलों का कर्तन कर देने के कारण, कर्ण को । पांडव युद्ध में अर्जुन के विरुद्ध लड़ेगा । इसलिये इन्द्र वैकर्तन नाम प्राप्त हुआ (म. आ. ६७)। कवचकुंडल अत्यंत चिंतित हुआ। कुन्ती को अर्जुन इन्द्र से हुआ
छील कर निकालने के कारण कुरूपता प्राप्त न हो, इसके था। पुत्र का कल्याण करना उसका कर्तव्य था, अतएव
लिये कर्ण ने शर्त रखी थी (म. व. २९४.३०)। कर्ण को हतबल करने के लिये उसके कवचकुंडल मांगने ____घटोत्कचवध-भारतीय युद्ध का प्रारंभ होने के बाद का विचार उसने किया । इन कवचकुंडलों के कारण कर्ण | भीष्म के पश्चात् द्रीण कौरवों का सेनापति बना । उस अजिंक्य एवं अमर था तथा कर्ण के द्वारा अर्जुनवध समय घटोत्कच ने कौरवसेना को अत्यंत त्रस्त किया । होना संभव था। परंतु कर्ण अत्यंत उदार होने के कारण, कृष्ण के मन से, यद्यपि कर्ण के कवचकुंडलों का भय इन्द्र की इच्छा पूरी होना संभव था। जैसे अर्जुन की | नष्ट हो चुका था, तथापि कर्ण की वासवी शक्ति से कृष्ण चिन्ता इन्द्र को थी, उसी प्रकार कर्ण की चिन्ता सूर्य को
काफी साशंक था। उस शक्ति का नाश करने की इच्छा से थी । इन्द्र का हेतु सूर्य को विदित था। इसलिये कर्ण के ही, उसने उस दिन घटोत्कच की योजना की थी। घटोत्कच स्वप्न में आ कर सूर्य ने दर्शन दिया । सूर्य ने इसे कहा | ने कौरवसेना के असंख्य सैनिकों का नाश कर उनको कि, इन्द्र ब्राह्मण वेष से आ कर तुम्हें कवचकुंडल माँगेगा
बिल्कुल त्रस्त कर छोड़ा। तब दुर्योधन कर्ण के पास गया, परंतु तुम मत देना। कवचकुंडल अमृत से बने हुए हैं,
तथा उस अमोघ शक्ति का प्रयोग घटोत्कच पर करने की इसलिये तुम अमर बन गये हो। कवचकुंडल दे कर
प्रार्थना की। कर्ण ने वह अमोध शक्ति खास अर्जुन तुम अपनी आयु का क्षय मत करो, तब कर्ण ने सूर्य को के लिये रखी थी। यह बात उसने दुर्योधन को बताई। पहचान लिया। कर्ण ने कहा कि, आयु की अपेक्षा कीर्ति | परंतु उससे कुछ लाभ न हुआ। अन्त में नाखुशी से वह श्रेयस्कर है, तथा कीर्ति मे ही उत्तम गति प्राप्त हो सकती | शक्ति घटोत्कच पर छोड़ कर उसने उसका वध किया है । मैं अमरत्व की आशा से कवचकुंडल की अभिलाषा | (म. द्रो. १५४)। नहीं रखूगा । इस पर सूर्य ने कहा कि, अर्जुन का वध | सैनापत्य-द्रोणाचार्य के बाद कर्ण को सैनापत्याभिषेक कर के जीवितावस्था में तुम कीर्ति प्राप्त कर सकते हो, | हुआ (म. क. ६. ४४-४५)। कर्ण के समान अद्वितीय अतएव कवचकुंडल देना अमान्य कर दो। परंतु कर्ण | योद्धा को, उतने ही अद्वितीय सारथि की आवश्यकता ने उसकी मंत्रणा अमान्य कर दी । यह सुन कर सूर्य | थी। इस समय केवल दो उत्तम सारथि थे। एक श्रीकृष्ण को अत्यंत दुख हुआ। उसने कहा, "तुम्हारे हित की | तथा दूसरा भद्र देशाधिपति शल्य । उनमें से कृष्ण अर्जुन
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