Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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ऐकादशाक्ष मानुतंतव्य
प्राचीन चरित्रकोश
ऐशिज
ऐकादशाक्ष मानतंतव्य---सूर्योदय के साथ साथ दिया। बाद में श्रीविष्णु के वचनानुसार कोटितीर्थ पर होने होम करनेवाले ( उदितहोमी) एक राजा का नाम (ऐ. वाले हरिमेध्य के यज्ञ में जाकर वेदार्थ पर इसने प्रवचन ब्रा. ५.३०)। यह नगरिन् जानश्रुतेय का समकालीन था। दिया। तब हरिमेध्य ने इसका पूजन कर अपनी कन्या से ऐकेपि--अंगिरस् देखिये।
उसका ब्याह कर दिया (स्कंद, १.२.४२, महिदास ऐक्ष्वाक--यह शब्द ब्राह्मण ग्रंथों में बहुतसे व्यक्तियों ऐतरेय देखिये)। के लिये प्रयुक्त हुआ है। राजा हरिश्चंद्र वैधस ऐश्वाक । ऐतश-एतश देखिये। था (ऐ. ब्रा. ७.१३.१६.)। पुरुकुत्स का यह अनुवांशिक ऐतशायन-अभ्यग्नि का पैतृक नाम । नाम है (श. ब्रा. १३.५.४.५)। ऐश्वाक वार्ष्ण नामक ऐमून-आभूतरजस् नामक देवगणों में से एक । . आचार्य का उल्लेख मिलता है (जै. उ. ब्रा. १.५.४)। ऐंद्र--अप्रतिरथ, जय, लव, वसुक्र, विमद, वृषाकपि व्यरुण भी ऐश्वाक था (पं. ब्रा. १३.३.१२)। यह नाम | सर्वहरि देखिये। बृहद्रथ के लिये भी प्रयुक्त हुआ है (मैन्यु. १.२; - ऐद्रद्युम्न--पुष्करमालिन् देखिये। असमाति देखिये)। ऋग्वेद में इक्ष्वाकु का उल्लेख है ऐद्राश्व--(सो.) भविष्यपुराण के अनुसार धन(ऋ. १०.६०.४; भगेरथ देखिये)। यह शब्द इक्ष्वाकु । याति का पुत्र । वंशजों के लिये सामान्यतः प्रयुक्त होता है।
ऐद्रोति–दृति ऐंद्रोति शौनक देखिये। ऐक्ष्वाकी--(सो.) भूमन्युपुत्र सुहोत्र की स्त्री । इसे . ऐभावत-प्रतीदर्श का पैतृक नाम है ( श. बा. १२ सुहोत्र से अजमीढ़, सुमीद, तथा पुरुमीढ़ नामक तीन पुत्र ८.२.३)। हुए थे (म. आ. ८९.२६)।
ऐरंमद--देवमुनि देखिये। ऐडविड--इडविडा का पुत्र कुबेर ।
ऐरावत--धृतराष्ट्र नामक नाग का पैतृक नाम (पं. २. (सू. इ.) दशरथ या शतरथ का पुत्र । ब्रा. २५.१५.३)। यहां वर्णित सर्पसत्र में यह ब्रह्मा ऐतरेय--सायण के मतानुसार इतरा नामक स्त्री से नामक त्रत्विज् था (अ. वे.८.१०.२९)। नाग शब्द के उत्पन्न होने के कारण यह मातृमूलक नाम पडा ।
सर्प तथा हाथी ये दो अर्थ होते हैं इस कारण परावर्ती इसका महिदास ऐतरेय एसा निर्देश है। (ऐ. आ. वाङ्मय में इंद्र के हाथी से संभवतः संबंध जोडा गया २. १.८; ३.७; छां. उ. ३. १६.७) तथा ऐतरेय
होगा (जरत्कारू देखिये)। कद्रपुत्र नागों को ऐरावत ऐसा ब्रह्मयज्ञांगतर्पण में उल्लेख है (आश्व. गृ. ३.४.४)।
कहते हैं। जनमेजय के सर्पसत्र में इनके दस कुल दग्ध ऐतरेयिन् स्वरूप में (अनुपद सूत्र ८. १; आश्व. श्री.
हुए जिनके नाम ये हैं पारावत, पारियात, पांडुर, हरिण, सूत्र १.३) उल्लेख है।
कृश, विहंग, शरभ, मोद, प्रमोद तथा संहतापन (म. आ. ___ हारीत ऋषि के वंश में मांइकि ऋषि को इतरा नामक २१.९७ स. ९.८. उ. १०१.११)। स्त्री से उत्पन्न होने के कारण इसका नाम ऐतरेय पड़ा।
२ फाल्गुन माह में सूर्योदय के साथ साथ घूमने वाला बचपन से ही यह 'नमो भगवते वासुदेवाय ' मंत्र जपने
पर्जन्य नामक नाग (मा. १२.११.४०)। लगा। यह किसी से नहीं बोलता था इसलिये मांडूकि ने
ऐरीडव-अंगिरा गोत्र का एक महर्षि पिंगा नाम दूसरी स्त्री से विवाह किया। जिससे उसे ऐल--पुरूरवस् का नामांतर । चार पुत्र हुए। वे बहुत विद्वान थे इसलिये उनका उत्तम ऐलविल--कुबेर देखिये । सन्मान हुआ। इतरा ने अपने पुत्र से कहा कि, तेरे | ऐलाकि-जीवल का पैतृक नाम । गुणवान न होने के कारण तेरे पिता मेरा अपमान करते हैं।
ऐलिक--भृगुकुल का एक गोत्रकार । मैं अब देहत्याग करूंगी। तब ऐतरेय ने इसे धर्मज्ञान दे ऐलूष--कवष का यह पैतृक नाम है। कर देहत्याग के विचारों से परावृत्त किया । कालोपरांत विष्णु ऐशिज-एक ऋषि (वायु. ५९, ९०-९१ ।। ने उन दोनों को साक्षात् दर्शन दिया तथा आशीर्वाद ब्रह्मांड में उशिज पाठ मिलता है।
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