Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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अर्थकारणतावादः मपि किन्न प्रकाशयेदिति चोद्य भवतोप्यतो योग्यतातो न किञ्चिदुत्तरम् ।
कारणस्य च परिच्छेद्यत्वे करणादिना व्यभिचारः ॥११॥ नहीन्द्रियमदृष्टादिकं वा विज्ञानकारणमप्यनेन परिच्छेद्यते । न ब्रमः-कारणं परिच्छेद्यमेव किन्तु 'कारणमेव परिच्छेद्यम्' इत्यवधारयामः; तन्न योगिविज्ञानस्य व्याप्तिज्ञानस्य चाशेषार्थ ग्राहिणोऽभावप्रसङ्गात् । न हि विनष्टानुत्पन्नाः समसमयभाविनो वास्तस्य कारण मित्युक्तम् । केशोण्डुका
ज्ञानका कारण नहीं है, रात्रिमें बिलाव आदि प्राणियोंको बिना प्रकाशके भी ज्ञान होता रहता है तथा मनके द्वारा जानने के लिये भी प्रकाशकी जरूरत नहीं रहती। बौद्धका यह हटाग्रह है कि यदि ज्ञान पदार्थ से उत्पन्न नहीं होता तो प्रतिनियत विषय व्यवस्था कैसे बनती कि अमुक ज्ञान अमुक पदार्थको ही ग्रहण करता है ? सो उसका जवाब यह है कि जैसे दीपक घट आदि से उत्पन्न न होकर भी उन प्रतिनियत घट आदिको ही प्रकाशित करता है वैसे ज्ञान है वह भी पदार्थ से उत्पन्न न होकर भी क्षयोपशम जन्य योग्यताके अनुसार प्रतिनियत विषयको जानता है । इस प्रकार मर्थकारणवाद और आलोककारण वादका निरसन किया गया है।
अब अग्रिम सूत्र प्रस्तुत करते हैं
___ कारणस्य परिच्छेद्यत्वे करणादिना व्यभिचारः ॥११॥
सूत्रार्थ:-जो ज्ञानका कारण है वही ज्ञानके द्वारा जाना जाता है ऐसा मानेंगे तो इन्द्रियोंके साथ व्यभिचार आता है ।
चक्ष आदि इन्द्रियां एवं अदृष्ट आदिक ज्ञानके कारण तो हैं किन्तु ज्ञानद्वारा परिच्छेद्य ( जानने योग्य ) नहीं है, अतः जो ज्ञानका कारण है वही जानने योग्य है ऐसा कहना व्यभिचरित होता है ।
शंकाः-जो ज्ञानका कारण है वह अवश्य ही परिच्छेद्य हो ऐसा नियम नहीं है किन्तु जो भी जाना जाता है वह कारण होकर ही जाना जाता है ऐसा हम बौद्ध अवधारण करते हैं ?
समाधानः-इसतरह भी अवधारण नहीं कर सकते क्योंकि ऐसा अवधारण करने पर भी अशेषार्थ ग्राही योगीका ज्ञान एवं व्याप्ति ज्ञान इन ज्ञानोंका अभाव होवेगा, इसीका खुलासा करते हैं-जो पदार्थ नष्ट हो चुके है जो अभी उत्पन्न नहीं हुए हैं, जो समकालीन है ये सब पदार्थ ज्ञानके कारण नहीं है ( किन्तु ) योगीका
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