Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

Previous | Next

Page 658
________________ ६१३ ननु पदप्रयोगः प्रेक्षावता पदार्थप्रतिपत्त्यर्थः, वाक्यार्थप्रतिपत्त्यर्थो वाभिधीयेत ? न तावत्पदार्थप्रतिपत्त्यर्थः श्रस्य प्रवृत्त्यहेतुत्वात् । अथ वाक्यार्थ प्रतिपत्त्यर्थः तदा पदप्रयोगानन्तरं पदार्थे प्रतिपत्तिः साक्षाद्भवतीति तत्र पदस्याभिधानव्यापारः पदार्थान्तरे तु गमकत्वव्यापारः; तदप्यसाम्प्रतम्; ‘वृक्षः’ इति पदप्रयोगे शाखादिमदर्थस्यैव प्रतिपत्तेः । तदर्थाच्च प्रतिपन्नात् 'तिष्ठति' इत्यादिपदवाच्यस्य स्थानाद्यर्थस्य सामर्थ्यतः प्रतीतेः, तत्र पदस्य साक्षाद्व्यापाराऽभावतो गमकत्वायोगात् तदर्थस्यैव तद्गमकत्वात् । परम्परया तत्रास्य व्यापारे लिंगवचनस्य लिंगिप्रतिपत्तौ व्यापारोऽस्तु तथा च शाब्दमेवानुमानज्ञानं स्यात् । लिंगवाचकाच्छन्दाल्लिंगस्य प्रतिपत्तेः सैव शाब्दी, न पुनस्तत्प्रतिपन्नलिंगा अन्विताभिधानवादः प्रभाकर - बुद्धिमान पुरुष पद का प्रयोग पद के अर्थ की प्रतिपत्ति के लिये. करते हैं अथवा वाक्य के अर्थ की प्रतिपत्ति के लिये करते हैं ? पद के अर्थ की प्रतिपत्ति के लिये तो कर नहीं सकते, क्योंकि पद का अर्थ प्रवृत्ति का हेतु नहीं है । वाक्य के अर्थ की प्रतिपत्ति के लिये पद प्रयोग करते हैं ऐसा द्वितीय पक्ष माने तब तो ठीक ही है, पद प्रयोग के अनंतर पद के अर्थ में तो साक्षात् प्रतिपत्ति होती है, इसलिये उसमें पद का अभिधान व्यापार होगा और पदार्थांतर में गमकत्व व्यापार होगा ? जैन - यह कथन अनुचित है, 'वृक्ष:' इस प्रकार के पदप्रयोग के होने पर शाखादिमान् अर्थ की ही प्रतीति होती है । तथा उस प्रतिपन्न अर्थ से ' तिष्ठति' इत्यादि पद के वाच्यभूत स्थानादि अर्थ की सामर्थ्य से प्रतीति होती है, उस अर्थ में वृक्ष पद का साक्षात् व्यापार नहीं होने से उसका वह गमक बन ही नहीं सकता, वह तो उसी अर्थ का गमक रहेगा । यदि कहा जाय कि वृक्ष पद का तिष्ठति पद के अर्थ में परंपरा से व्यापार होता है तो हेतु वचन का साध्य के प्रतिपत्ति में व्यापार होता है ऐसा भी मानना होगा, और इस तरह् मान लेने पर अनुमान ज्ञान शाब्दिक ही कहलायेगा । शंका- हेतु के वाचक शब्द से हेतु की प्रतीति होती है ज्ञान कहते हैं किन्तु शब्द से ज्ञात हुए हेतु से जो साध्य का ज्ञान शाब्दिक नहीं कह सकते अन्यथा प्रतिप्रसंग होगा ? Jain Education International समाधान तो फिर वृक्ष शब्द से होने वाली स्थानादि अर्थ की प्रतीति भी शाब्दिक मत होवे अन्यथा अतिप्रसंग होगा । अर्थात् जिस प्रकार शब्द से ज्ञात हुए हेतु द्वारा होने वाले साध्य के ज्ञान को परंपरा से पद रूप शब्दजन्य होते हुए भी शाब्दिक नहीं मानते उसी प्रकार वृक्षपद द्वारा परंपरा से होने वाले स्थानादि अर्थ ज्ञान को - उसे ही शाब्दिक होता है उसे तो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698