Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 679
________________ ६३४ प्रमेयकमलमार्तण्डे प्राणादि प्रभव प्राणादि-प्राणादि से उत्पन्न होने वाले प्राणादि । परम प्रकर्ष - उत्कृष्ट रूप से वृद्धि । प्रत्यभिज्ञान प्रामाण्यवाद-जोड़ रूप प्रत्यभिज्ञान को इस प्रकरण में प्रमाणभूत सिद्ध किया है। परिशोधक-विषय का शोधन करने वाला ज्ञान परिशोधक कहलाता है। प्रत्यक्ष पृष्ट भावी विकल्प ज्ञान-निर्विकल्प प्रत्यक्ष ज्ञान के पीछे विकल्प ज्ञान उत्पन्न होता है ऐसा बौद्ध मानते हैं। पक्ष- साध्य के आधार को पक्ष कहते हैं। पांचरूप्यवाद--नैयायिक हेतु के पांच गुण मानते हैं-पक्ष धर्म, सपक्ष सत्त्व, विपक्ष व्यावृत्ति, अबाधित विषय और असत्प्रतिपक्षत्व । प्रसज्य प्रतिषेध-सर्वथा निषेध या प्रभाव को प्रसज्य प्रतिषेध कहते हैं। पर्युदासप्रतिषेध - किसी अपेक्षा से निषेध या भावांतर स्वभाव वाले अभाव को पर्युदास ___ कहते हैं। पूर्ववदाद्यनुमान त्रैविध्य निरास-नैयायिक अनुमान के तीन प्रकार मानते हैं—पूर्ववत्, शेषवत् और सामान्य तो दृष्ट, इस मान्यता का जैन ने निरसन किया है। प्रमाण सिद्ध धर्मी-प्रत्यक्ष प्रमाण से पक्ष के सिद्ध रहने को प्रमाण सिद्ध धर्मी कहते हैं । प्रतिज्ञा-धर्म धर्मी समुदायः प्रतिज्ञा, धर्म और धर्मी अर्थात् साध्य और पक्ष को कहना प्रतिज्ञा कहलाती है। व्रत या नियम प्रादि के लेने को भी प्रतिज्ञा कहते हैं। प्रज्ञाकर गुप्त-बौद्ध ग्रन्थकार । प्रभाकर-मीमांसक के एक भेद स्वरूप प्रभाकर नामा ग्रन्थकार के अभिप्राय को मानने वाले __ प्रभाकर कहलाते हैं। प्रतिविहित-खंडित । प्रकरणसमहेत्वाभास=वादी प्रतिवादी दोनों के पक्ष का हेतु समान रूप से स्वसाध्य का साधक होना अर्थात् तुल्य बल वाला होना प्रकरणसम नामा हेत्वाभास है, इसको योग मानते हैं। प्रतिबन्ध-अविनाभाव सम्बन्ध का दूसरा नाम प्रतिबन्ध है। प्रतिबन्धक-रोकने वाला। प्रेरणा-वेद । पौरुषेय-पुरुषकृत। प्रक्षालिताशुचिमोदक परित्यागन्याय-कोई भिक्षु आदि मार्ग से मोदक (लड्ड.) ले जा रहा था हाथ से मोदक नाली में गिरा उसको लोभ वश पहले तो उठाकर धो लिया किन्तु पीछे Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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