Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
प्राणादि प्रभव प्राणादि-प्राणादि से उत्पन्न होने वाले प्राणादि । परम प्रकर्ष - उत्कृष्ट रूप से वृद्धि । प्रत्यभिज्ञान प्रामाण्यवाद-जोड़ रूप प्रत्यभिज्ञान को इस प्रकरण में प्रमाणभूत सिद्ध किया है। परिशोधक-विषय का शोधन करने वाला ज्ञान परिशोधक कहलाता है। प्रत्यक्ष पृष्ट भावी विकल्प ज्ञान-निर्विकल्प प्रत्यक्ष ज्ञान के पीछे विकल्प ज्ञान उत्पन्न होता है
ऐसा बौद्ध मानते हैं। पक्ष- साध्य के आधार को पक्ष कहते हैं। पांचरूप्यवाद--नैयायिक हेतु के पांच गुण मानते हैं-पक्ष धर्म, सपक्ष सत्त्व, विपक्ष व्यावृत्ति,
अबाधित विषय और असत्प्रतिपक्षत्व । प्रसज्य प्रतिषेध-सर्वथा निषेध या प्रभाव को प्रसज्य प्रतिषेध कहते हैं। पर्युदासप्रतिषेध - किसी अपेक्षा से निषेध या भावांतर स्वभाव वाले अभाव को पर्युदास
___ कहते हैं। पूर्ववदाद्यनुमान त्रैविध्य निरास-नैयायिक अनुमान के तीन प्रकार मानते हैं—पूर्ववत्, शेषवत्
और सामान्य तो दृष्ट, इस मान्यता का जैन ने निरसन किया है। प्रमाण सिद्ध धर्मी-प्रत्यक्ष प्रमाण से पक्ष के सिद्ध रहने को प्रमाण सिद्ध धर्मी कहते हैं । प्रतिज्ञा-धर्म धर्मी समुदायः प्रतिज्ञा, धर्म और धर्मी अर्थात् साध्य और पक्ष को कहना
प्रतिज्ञा कहलाती है। व्रत या नियम प्रादि के लेने को भी प्रतिज्ञा कहते हैं। प्रज्ञाकर गुप्त-बौद्ध ग्रन्थकार । प्रभाकर-मीमांसक के एक भेद स्वरूप प्रभाकर नामा ग्रन्थकार के अभिप्राय को मानने वाले
__ प्रभाकर कहलाते हैं। प्रतिविहित-खंडित । प्रकरणसमहेत्वाभास=वादी प्रतिवादी दोनों के पक्ष का हेतु समान रूप से स्वसाध्य का साधक
होना अर्थात् तुल्य बल वाला होना प्रकरणसम नामा हेत्वाभास है, इसको योग
मानते हैं। प्रतिबन्ध-अविनाभाव सम्बन्ध का दूसरा नाम प्रतिबन्ध है। प्रतिबन्धक-रोकने वाला। प्रेरणा-वेद । पौरुषेय-पुरुषकृत। प्रक्षालिताशुचिमोदक परित्यागन्याय-कोई भिक्षु आदि मार्ग से मोदक (लड्ड.) ले जा रहा था हाथ
से मोदक नाली में गिरा उसको लोभ वश पहले तो उठाकर धो लिया किन्तु पीछे
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