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शुद्धि पत्र
ष्ठ
पंक्ति
शुद्ध
दृष्टान्तः
होते
अशुद्ध दृष्टांता होते हैं तत्तेनापलभ्यते पदार्थके व्यभिचरित बतलाइये एकल अत्रैवार्थ (किन्तु) कर्मति मित्रता हानि है
तत्तेनोपलभ्यते पदार्थके साथ व्यभिचरित बतलाये एकत्व अत्रैवार्थे
किन्तु
और अत्यंत प्रचयात्मकेऽथ वैसे ही योगीज्ञान
सर्वज्ञ सिद्ध कात्यायनी आदिके मत का
कर्मेति भिन्नता हानि है, जैसे रत्नादिके आवरणकी हानि देखी जाती है, इस प्रकार और उसका अत्यंत प्रचयात्मकेऽर्थे वैसे ही योगीके ज्ञानका प्रतिबंधक कर्म हटने पर योगीज्ञान सर्वज्ञपना सिद्ध कात्यायनी आदिके अनुमानके अतिशय के साथ एवं जैमिनी आदिके साधक नहीं मानेगा बना लेते महानसका धूम प्रत्यक्ष ज्ञान भी मानना अभ्यास से तो भी उसमें
ज्ञायक नहीं होगा बचा लेते मानसका धूम प्रत्यभिज्ञान भी मानना अभ्यास के तो उसमें भी
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