Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
चार्वाक दर्शन चार्वाक का कहना है कि न कोई तीर्थकर है न कोई वेद या धर्म है। कोई भी व्यक्ति पदार्थ को तर्क से सिद्ध नहीं कर सकता। ईश्वर या भगवान भी कोई नहीं है। जीव-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु इन भूत चतुष्टय से उत्पन्न होता है और मरने के बाद शरीर के साथ भस्म होता है, अतः जीवन का लक्ष्य यही है कि
यावत् जीवेत् सुखं जीवेत्, ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत् ।
__ भस्मीभूतस्यदेहस्य पुनरागमनं कुतः ॥१॥ जब तक जीना है तब तक सुख से रहे। कर्ज करके खूब घी आदि भोग सामग्री भोगे! क्योंकि परलोक में जाना नहीं, आत्मा यह शरीर रूप ही है पृथक् नहीं, शरीर यहीं भस्म होता है उसी के साथ चैतन्य भो समाप्त होता है, पुनर्जन्म है नहीं। चार्वाक के यहां दो ही पुरुषार्थ हैं अर्थ और काम । परलोक स्वर्ग नरक आदि कुछ नहीं। पुण्य, पाप, धर्म, अधर्म आदि नहीं हैं, जब जीव जन्मता है तो पृथ्वी आदि से एक चैतन्य शक्ति पैदा हो जाती है। जैसे आटा, गुड़, महुआ आदि से मदिरा में मदकारक शक्ति पैदा होती है। धर्म नामा कोई तत्त्व नहीं है । जब परलोक में जाने वाला आत्मा ही नहीं है तो धर्म किसके साथ जायेगा? धर्म क्या है इस बात को समझना भी कठिन है। जीवनका चरम लक्ष्य मात्र ऐहिक सुखों की प्राप्ति है। चार्वाक एक प्रत्यक्ष प्रमाण मानता है। जिस वस्तु का चक्षु आदि इन्द्रियों से ज्ञान होता है वही ज्ञान और वस्तु सत्य है, बाकी सब काल्पनिक । अनुमान प्रमाण नहीं है, क्योंकि उसमें साध्य और साधन को व्याप्ति सिद्ध नहीं होती है। जब आत्मा ही नहीं है तब सर्वज्ञ भी कोई नहीं है, न उसके द्वारा प्रतिपादित धर्म है। ज्ञान तो शरीर का स्वभाव है आत्मा का नहीं, ऐसा इस नास्तिकवादो का कहना है, इसीलिये इसको भौतिकवादी, नास्तिकवादी, लौकायत नामों से पुकारते हैं। वर्तमान में प्रायः अधिक संख्या में इसी भौतिक मत का प्रचार है।
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