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प्रमेयकमलमार्तण्डे लिये या तत्त्व ज्ञान प्राप्ति के लिये जो प्रयत्न किया जाता है वह मोक्ष या मुक्ति का मार्ग ( उपाय ) है।
मुक्ति दुख से अत्यन्त विमोक्ष होने को अपवर्ग या मुक्ति कहते हैं, मुक्त अवस्था में बुद्धि, सुख, दुख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म, संस्कार इन नौ गुणों का अत्यन्त विच्छेद हो जाता है नैयायिक का यह मुक्ति का प्रावास बड़ा ही विचित्र है कि जहां पर प्रात्माके ही खास गुण जो ज्ञान और सुख या आनन्द हैं उन्ही का वहां अभाव हो जाता है। अस्तु ।
वैशेषिक दर्शन वैशेषिक दर्शन में सात पदार्थ माने हैं, उनमें द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष समवाय ये छः तो सद्भाव हैं और प्रभाव पदार्थ अभावरूप ही है।
द्रव्य-जिसमें गुण और क्रिया पायी जाती है, जो कार्य का समवायी कारण है उसको द्रव्य कहते हैं। इसके नौ भेद हैं, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, काल, दिशा, आत्मा, मन ।
गुण-जो द्रव्य के आश्रित हो और स्वयं गुण रहित हो तथा संयोग विभाग का निरपेक्ष कारण न हो वह गुण कहलाता है। इसके २४ भेद हैं, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, संख्या, परिमाण वेग, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह, शब्द, बुद्धि, सुख, दुःख, धर्म, अधर्म, इच्छा; द्वष, प्रयत्न, संस्कार।
कर्म-जो द्रव्य के आश्रित हो गुण रहित हो तथा संयोग विभाव का निरपेक्ष कारण हो वह कर्म है। उसके , भेद हैं उत्क्षेपण, अवक्षेपण, प्राकुञ्चन, प्रसारण, गमन ।
सामान्य—जिसके कारण वस्तुओं में अनुगत ( सदृश ) प्रतीति होती है वह सामान्य है वह व्यापक और नित्य है।
विशेष-समान पदार्थों में भेद की प्रतीति कराना विशेष पदार्थ का काम है।
समवाय-अयुत सिद्ध पदार्थों में जो सम्बन्ध है उसका नाम समवाय है। गुण गुणी के संबंध को समवाय सम्बन्ध कहते हैं ।
__ अभाव-मूल में प्रभाव के दो भेद हैं-संसर्गाभाव और अन्योन्याभाव । दो वस्तुत्रों में रहने वाले संसर्ग के अभाव को संसर्गाभाव कहते हैं। अन्योन्याभाव का मतलब यह है कि एक वस्तु का दूसरी वस्तु में अभाब है। संसर्गाभाव के तीन भेद हैं, प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, अत्यंताभाव । इनमें अन्योन्याभाव जोड़ देने से प्रभाव के चार भेद होते हैं। वैशेषिक दर्शन में वेद को तथा सृष्टि को नैयायिक के समान ही ईश्वर कृत माना है, परमाणुवाद अर्थात् परमाणु का लक्षण, कारण कार्य भाव आदि का कथन नैयायिक सदृश ही है ।
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