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विशिष्ट शब्दावली
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स्वार्थातिलंघन-अपने विषय का उल्लंघन, साध्यधर्मी-अनुमान द्वारा जिसको सिद्ध करना है उसको साध्य तथा उस साध्य के रहने के
स्थान को धर्मी कहते हैं। सुनिश्चिता संभवत् बाधक प्रमाण--जिसमें नियम से बाधक प्रमाण संभव न हो उस प्रमाण
को सुनिश्चित असंभव बाधक प्रमाण कहते हैं। संवाद-विवक्षित प्रमाण का समर्थन करने वाला प्रमाण संवाद कहलाता है । सन्दिग्धव्यतिरेक-हेतु का विपक्ष में व्यतिरेक अर्थात् नहीं रहना संशयास्पद हो तो उस हेतु को
सन्दिग्ध व्यतिरेक कहते हैं। सत्तासमवाय- वस्तु की सत्ता अर्थात् अस्तित्व समवाय नामा किसी अन्य पदार्थ से होता है
ऐसा सत्तासमवाय मानने वाले नैयायिकादि प्रवादी कहते हैं । सर्ग-रचना, उत्पत्ति । समर्थ स्वभाव-जिसमें स्वयं समर्थ स्वभाव होवे । सर्वज्ञत्ववाद-सर्वज्ञ को मीमांसक नहीं मानते उस मान्यता का इस सर्वज्ञत्ववाद प्रकरण में
खण्डन किया है। सत्कार्यवाद–सांख्य प्रत्येक कार्य को कारण में सदा से मौजूद ही ऐसा मानते हैं, इस मान्यता
को सत्कार्यवाद कहते हैं, इनका कहना है कि बीज में अंकुर, मिट्टी में घट इत्यादि
पहले से ही रहते हैं। समवशरण–अहंत तीर्थंकर भगवान की धर्मोपदेश की सभा जिसमें असंख्य भव्य प्राणियों को
मोक्षमार्ग का उपदेश एवं शरण मिलती है। संतान- बौद्ध प्रत्येक वस्तु को क्षण भंगुर मानते हैं, अर्थात् वस्तु प्रतिक्षण नष्ट होती है किन्तु
तत्सम तत्काल दूसरी प्रादुर्भूत होती है उसी को संतान कहते हैं। व्यवहार में
अपने पुत्र पुत्रियों को भी संतान कहते हैं। सुषुप्त-निद्रित। सान्वयचित्तसंतान-यह चित्त है यह चित्त है इस प्रकार के अन्वय सहित चित्त अर्थात् चैतन्य
की परंपरा को सान्वयचित्त सन्तान कहते हैं। स्वाप-निद्रा। स्त्रीमुक्ति विचार-श्वेताम्बर स्त्रियों को उसी पर्याय में मुक्ति होना मानते हैं उसका इस
प्रकरण में खंडन किया है। सचेलसंयम-वस्त्र सहित संयम, स्त्रियों के वस्त्र सहित संयम ही संभव है, वह वस्त्र त्याग नहीं
कर सकती अतः इसके संयम को सचेल संयम कहते हैं।
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