Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 680
________________ विशिष्ट शब्दावली ६३५ ग्लानि तथा लोक की हँसी के कारण उसको छोड़ दिया उसी प्रकार पहले किसी बात को स्वीकार करके पोछे भयादि के कारण उसको छोड़ देना "प्रक्षालिता शुचिमोदकपरित्यागन्याय" कहलाता है। (ब) बुद्धिमद्धेतुक-बुद्धिमान कारण से होने वाला बुभुक्षा-भोजन की वांछा। बला तैल-सर्व शब्दों को श्रवण की शक्ति को उत्पन्न करने वाला तेल । (भ) भावनाज्ञान-किसी एक विषय में मनके तल्लीन होने से उसका सामने नहीं होते हुए भी प्रत्यक्षवत् प्रतिभास होने को भावना ज्ञान कहते हैं। भाव वाक्य-वचन द्वारा अंतरंग में होने वाला ज्ञान । भाट्ट-मीमांसक का एक प्रभेद-भट्ट नाम के ग्रंथकार के सिद्धांत को मानने वाला। (म) महाभूत-पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इनको महाभूत कहते हैं, इनके सूक्ष्म महाभूत तथा स्थूल महाभूत ऐसे दो भेद हैं। महान्-प्रकृति तत्त्व से महान् (बुद्धि) उत्पन्न होता है ऐसा सांख्य मानते हैं। मिद्ध-निद्रा महानस-रसोई घर मोक्ष स्वरूप विचार-अनन्तचतुष्टय स्वरूप मोक्ष होता है इसको इस प्रकरण में सिद्ध किया है। (य) योगज धर्म-ध्यान के प्रभाव से होने वाला अतिशय ज्ञान आदि । (र) रथ्या पुरुष-पागल, गली में भ्रमण करने वाला। (ल) लिंग-लिंगी सम्बन्ध–साधन और साध्य का सम्बन्ध । लक्षित लक्षणा-लक्षितेन (सामान्येन-ज्ञातेन ) लक्षणा-विशेष प्रतिपत्ति, अर्थात् सामान्य के ज्ञात होने से उसके द्वारा विशेष का निश्चय होना लक्षित लक्षणा कहलाती है। (व) विवर्त्त-पर्याय, अवस्था । विपाकान्त- फल देने तक रहने वाला (कर्म) व्यक्ति - विशेष भेद-प्रभेद विपर्यय-विपरीत, व्याप्य-व्यापक-"व्यापकं तदतनिष्ठं व्याप्यं तनिष्ठमेव च" अर्थात्वाच्य-वाचक-कहने योग्य पदार्थ को वाच्य और कहने वाले शब्द को वाचक कहते हैं। व्युत्पन्नप्रतिपतृ-अनुमान व्याकरण या अन्य किसो विषय में प्रवीण पुरुष को व्युत्पन्नप्रतिपतृ कहते हैं। Jain Education International For Private &Personal use only www.jainelibrary.org

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