Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे नाप्य भिहितान्वयः; यतोऽभिहिताः पदैराः शब्दान्तरादन्वीयन्ते, बुद्धया वा ? न तावदाद्यः पक्षः; शब्दान्तरस्याशेषपदार्थविषयस्याभिहितान्वयनिबन्धनस्याभावात् । द्वितीयपक्षे तु बुद्धिरेव वाक्यं ततो वाक्यार्थप्रतिपत्तेः, न पुनः पदान्येव । ननु पदार्थेभ्योऽपेक्षाबुद्धिसन्निधानात्परस्परमन्वितेभ्यो वाक्यार्थप्रतिपत्तेः परम्परया पदेभ्य एव भावान्नातो व्यतिरिक्तं वाक्यम्; तहि प्रकृत्यादिव्यतिरिक्त पदमपि मा भूत्, प्रकृत्यादीनामन्वितानामभिधाने अभिहितानां वान्वये पदार्थप्रतिपत्तिप्रसिद्ध ।
ननु 'पदमेव लोके वेदे वार्थप्रतिपत्तये प्रयोगाहम् न तु केवला प्रकृतिः प्रत्ययो वा, पदादपोद्धृत्य तद्व्युत्पादनार्थं यथाकथञ्चित्तदभिधानात् । तदुक्तम्-“अथ गौरित्यत्र कः शब्दः ?:गकारोकार
भाट्ट का अभिहित अन्वयवाद रूप वाक्यार्थ भी अयुक्त है, अर्थात् पदों द्वारा कहे हुए अर्थों का अन्वय ( सम्बन्ध ) वाक्यार्थ में होता है अतः “पदैः अभिहितानां अर्थानां अन्वयः सम्बन्धः वाक्यार्थः" पदों द्वारा कहे हुए अर्थ वाक्य से परस्पर में संबद्ध होते हैं अतः वे ही वाक्य का अर्थ है ऐसा भाट्ट का मंतव्य भी समीचीन नहीं है, क्योंकि पदों द्वारा कहे हुए अर्थ शब्दांतर से परस्पर में संबद्ध किये जाते हैं या बुद्धि से संबद्ध किये जाते हैं ? प्रथम पक्ष अनुचित है, क्योंकि अशेष पदों के अर्थों को विषय करने वाला ऐसा अभिहित अन्वय का निमित्तभूत कोई शब्दांतर ही नहीं है। द्वितीय पक्षबुद्धि से उक्त अर्थों का सम्बन्ध किया जाता है ऐसा माने तो बुद्धि वाक्य कहलायेगी क्योंकि उसीसे वाक्य के अर्थ की प्रतीति हुई है, पद ही वाक्य होते हैं ऐसा कथन तो असिद्ध ही रहा ?
शंका-अपेक्षा बुद्धि का सन्निधान होने के कारण परस्पर में अन्वित हुए पदों के अर्थों से वाक्यार्थ की प्रतिपत्ति होती है अतः परंपरा से पदों द्वारा ही वाक्य का अर्थ हुआ है इसलिये इनसे व्यतिरिक्त वाक्य नहीं है ?
समाधान- तो फिर प्रकृति प्रत्यय आदि से व्यतिरिक्त पद भी नहीं होना चाहिए, क्योंकि परस्पर में सम्बद्ध हुए प्रकृति प्रत्यय आदि का कथन करने पर अथवा अभिहित ( कथित ) प्रकृति आदिका अन्वय ( सम्बन्ध ) होने पर पद के अर्थ की प्रतिपत्ति होती है ऐसा सुप्रसिद्ध ही है। अत: इन प्रकृति आदि से भिन्न पद का अस्तित्व भी नहीं रहेगा।
__ शंका- लोक में तथा वेद में अर्थ प्रतिपत्ति के लिये पद ही प्रयोग के योग्य होता है, केवल प्रकृति ( धातु और लिंग ) या केवल प्रत्यय प्रयोगार्ह नहीं होते, हां
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