Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 666
________________ उपसंहार उपसंहार उपसंहार इस प्रकार है कि-प्रथम ही परोक्ष प्रमाण का लक्षण है, तदनंतर उसके स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम ऐसे पांच भेद बतलाये हैं, पुनः स्मृति प्रत्यभिज्ञान और तर्क को प्रमाण नहीं मानने वाले जैनेतर परवादियों के प्रति इनके प्रामाण्य की सिद्धि की है। अनंतर अनुमान प्रमाण का लक्षण एवं भेद दर्शाया, हेतु के लक्षण का प्रणयन करते हुए त्रैरूप्यवादी बौद्ध और पांच रूप्यवादी नैयायिक के हेतु लक्षण का खण्डन किया एवं पूर्ववत् अादि अनुमान के भेदों का निरसन किया, हेतु के कुल बावीस भेद सोदाहरण कहे । आगम प्रमाण का लक्षण करते ही मीमांसक ने अपौरुषेय वेद का पक्ष रखा अत: उसका निरसन किया। पुनश्च शब्द नित्यत्व का निराकरण, अपोहवाद एवं स्फोटवाद निराकरण किया है, तथा वाक्य का निर्दोष लक्षण बताया है। प्रमेयकमलमार्तण्डग्रन्थ के राष्ट्र भाषानुवाद स्वरूप इस द्वितीय भाग में बीस प्रकरणों का समावेश है, उपर्युक्त तृतीय परिच्छेद के स्मृति प्रमाण आदि प्रकरणों के पूर्व अर्थ कारणवाद आदि द्वितीय परिच्छेद के प्रकरण हैं। श्री माणिक्यनंदी आचार्यविरचित परीक्षामुख ग्रन्थ के द्वितीय अध्याय के अंतिम सात सूत्र तथा तृतीय अध्याय के संपूर्ण सूत्र एक सौ एक ( अथवा ६६ ) कुल १०८ सूत्र इस हिंदी भाषानुवाद रूप द्वितीय भाग में समाविष्ट हुए हैं। __इस प्रकार उक्त सूत्र एवं प्रकरणों का अनुवाद अल्प बुद्धि अनुसार मैंने ( आर्यिका जिनमति ने ) किया है, इसमें अज्ञान एवं प्रमाद वश यदि स्खलन हुअा हो तो बुद्धिमान सज्जन संशोधन करें। गच्छन्तः स्खलनं क्वापि भवेदेव प्रमादतः । हसंति दुर्जनास्तत्र समादधति सज्जनाः ।।१।। इस प्रकार परीक्षामुख का अलंकार स्वरूप श्री प्रभाचन्द्राचार्यदेव विरचित प्रमेयकमलमार्तण्डनामा ग्रन्थ का द्वितीय भाग परिपूर्ण हुआ। ।। इति भद्रं भूयात् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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