Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे अथ गम्यमानैस्तैस्तस्यान्वितत्वम् न पुनरभिधीयमानैः तेनायमदोषः; किमिदानीमभिधीयमान एव पदस्यार्थः ? तथोपगमे कथमन्विताभिधानम्-विवक्षितपदस्य गम्यमानपदान्तराभिधेयार्थानामविषयत्वात् ?
अथ पदानां द्वौ व्यापारौ-स्वार्थाभिधानव्यापारः, पदान्तरार्थ गमकत्वव्यापारश्च । कथमेवं पदार्थप्रतिपत्तिरावृत्त्या न स्यात् ? पदव्यापारात्प्रतीयमानस्येव गम्यमानस्यापि पदार्थत्वात् । न च पदव्यापारात्प्रतीयमानत्वा विशेषेपि कश्चिदभिधीयमानः कश्चिद्गम्यमान इति विभागो युक्तः।
उसके अर्थ की प्रतिपत्ति से वाक्यार्थ का बोध नहीं होता एवं द्वितीयादि पद के उच्चारण से अशेष पदों के अभिधेयों से अन्वित ऐसे उसके अर्थ की प्रतिपत्ति से भी वाक्यार्थ का अवबोध नहीं हो पाता, सो इस तरह की मान्यता में क्या विशेष कारण है वह दृष्टिगोचर नहीं होता, अर्थात् जब सभी पद परस्पर के अर्थ से अन्वित हैं तब अंतिम पद से तो वाक्यार्थ का अवबोध हो और प्रथमादि पद से न हो ऐसा भेद भाव होने में कोई निमित्त दिखायी नहीं देता, अतः पद का अर्थ अन्य पद के अर्थ से अन्वित ही रहता है और उससे वाक्यार्थ का ज्ञान होता है ऐसा कहना युक्ति संगत नहीं है ।
प्रभाकर-जो पद गम्यमान हैं ( पदांतरों से गोचरीकृत हैं ) उनसे उस उच्चार्यमान पद का अर्थ अन्वित होता है न कि अभिधीयमान पदों से, अतः उक्त दोष नहीं आता ?
जैन-तो क्या आप इस समय पद का अर्थ अभिधीयमान ही मानते हैं ? यदि हां तो आपका अन्वित अभिधानवाद अर्थात् पूर्व पद का अर्थ उत्तर पद से अन्वित होता है ऐसा कहना किस प्रकार सिद्ध होगा ? क्योंकि विवक्षित पद गम्यमान पदांतरों के अभिधेय अर्थों को विषय ही नहीं करता है ।
- प्रभाकर-पदों के दो व्यापार ( कार्य ) होते हैं - एक अपने अर्थ के कथन में व्यापार और दूसरा पदांतर के अर्थ के गमकत्व में व्यापार, अतः अन्वित अभिधान रूप वाक्यार्थ घटित हो जायगा ?
जैन- इस तरह तो आवृत्ति से पद के अर्थ की प्रतिपत्ति होना रूप पूर्वोक्त दोष कैसे नहीं आयेगा ? अर्थात् अवश्य आयेगा। क्योंकि पद के व्यापार से प्रतीयमान के समान गम्यमान का भी अर्थ होता है क्योंकि दो पद के ही अर्थ हैं। पदव्यापार से प्रतीयमानता समान होते हुए भी किसी को अभिधीयमान और किसी को गम्यमान मानने का विभाग तो युक्तियुक्त नहीं है ।
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