Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 656
________________ ६११ अन्विताभिधानवादः स्तावतां वाक्यार्थत्वं स्यात् । श्रविवक्षितपदार्थव्यवच्छेदार्थत्वान्न 'गाम्' इत्यादिपदोच्चारण वैयर्थ्यम्; इत्यत्राप्यावृत्त्या वाक्यार्थ प्रतिपत्तिः स्यात् - प्रथमपदेनाभिहितस्य द्वितीयादिपदाभिधेयैरन्वितस्यार्थस्य द्वितीयादिपदैः पुनः पुनः प्रतिपादनात् । अथ द्वितीयादिपदैः स्वार्थस्य प्रधानभावेन पूर्वोत्तरपदाभिधेयाथैरन्वितस्याभिधानं नाद्यपदेन तोयदोषः तर्हि यावन्ति पदानि तावन्तस्तदर्थाः पदान्तराभिधेयार्थान्विताः प्राधान्येन प्रतिपत्तव्या इति तावत्यो वाक्यार्थप्रतिपत्तयः कथं न स्युः ? न ह्यन्त्यपदोच्चारणात्तदर्थस्याशेषपूर्वपदाभिधेयैरन्वितस्य प्रतिपर्वाक्यार्थावबोधो भवति, न पुनः प्रथमपदोच्चारणात् तदर्थस्यावान्तरपदाभिधेयैरन्वितस्य, द्वितीयादिपदोच्चारणाच्चाऽशेषपदाभिधेयैरन्वितस्य तदर्थस्य प्रतिपत्तेरित्यत्रनिमित्तमुत्पश्यामः । हो जाने से उन शेष पदों का उच्चारण करना व्यर्थ ठहरता है । तथा प्रथम पद को ही वाक्यपना प्राप्त होता है । अथवा एक वाक्य में जितने पद हैं उन सबको वाक्यपना प्राप्त होता है एवं जितने एक एक पद के अर्थ हैं उन सबको वाक्यार्थपना प्राप्त होता है । शंका - प्रविवक्षित पद के अर्थ का व्यवच्छेद विवक्षित पद से हो जाता है। अतः गां इत्यादि पदों का उच्चारण करना व्यर्थ नहीं ठहरता है ? T: समाधान - ऐसा कहना ठीक नहीं, आवृति से वाक्य के अर्थ की प्रतिपत्ति होती है पदों के अभिधेयों से अन्वित ( सहित ) अर्थ का उसी को द्वितीयादि पदों द्वारा पुनः पुनः कहा जाता है, ऐसा स्वीकार करना होगा । इस तरह तो पुनः पुनः प्रवृत्ति रूप ऐसा मानना होगा अर्थात् द्वितीयादि प्रथम पद द्वारा कथन हो चुकता है शंका - पूर्वोत्तर पदों के अभिधेय अर्थों के साथ अन्वित ऐसा अपना अर्थ प्रधान रूप से द्वितीयादि पदों द्वारा कहा जाता है प्रथम पद द्वारा वैसा प्रधान रूप से नहीं कहा जाता अतः उक्त दोष नहीं आयेगा ? समाधान - तो फिर जितने पद हैं उतने उनके अर्थ हैं और पदांतर के अभिधे अर्थ सेन्वित प्राध्यान से प्रतिपत्ति के योग्य हैं ऐसा अर्थ निकलता है अतः उतने वाक्य एवं अर्थ प्रतिभास कैसे नहीं कहलायेंगे । अर्थात् अवश्य कहलायेंगे | मीमांसक का यह जो कहना है कि अंतिम पद के उच्चारण से प्रशेष पूर्व पदों के अभिधेय अर्थों से अन्वित ऐसे उसके अर्थ की प्रतिपत्ति हो जाने से वाक्यार्थ का बोध होता है किन्तु प्रथम पद के उच्चारण से अवांतर पदों के अभिधेयों से अन्वित ऐसे Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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