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अविनाभावादीनां लक्षणानि न हि तत्साध्यप्रतिपत्त्यङ्ग तत्र यथोक्तहेतोरेव व्यापारात् ॥३८॥ न हि तत् साध्यप्रतिपत्त्यंग तत्र यथोक्तहेतोरेव साध्याविनाभावनियमैकलक्षणस्य व्यापारात् । द्वितीयविकल्पोप्यसम्भाव्यः
तदविनाभावनिश्चयार्थं वा विपक्षे बाधकादेव तसिद्धः ॥३९।। न हि हेतोस्तेन साध्येनाविनाभावस्य निश्चयार्थं वा तदुपादानं युक्तम्; विपक्षे बाधकादेव तत्सिद्ध: । न हि सपक्षे सत्त्वमात्राद्ध तोर्व्याप्तिः सिद्धयति, ‘स श्यामस्तत्पुत्रत्वादितरतत्पुत्रवत्' इत्यत्र तदाभासेपि तत्सम्भवात् । ननु साकल्येन साध्य निवृत्ती साधन निवृत्तरत्रासम्भवात्परत्र गौरेपि तत्पुत्रे
न हि तत् साध्यप्रतिपत्यंग क्ता यथोक्त हेतोरेव व्यापारात् ॥३८।।
। सूत्रार्थ-साध्यकी प्रतिपत्ति के लिये उदाहरण निमित्त नहीं है, क्योंकि वह प्रतिपत्ति तो यथोक्त (साध्याविनाभावी) हेतुके प्रयोगसे ही हो जाती है । साध्यके साथ जिसका अविनाभावी संबंध है ऐसे हेतु द्वारा ही साध्यका बोध हो जानेसे उदाहरणकी आवश्यकता नहीं रहती है। द्वितीय विकल्पहेतुका साध्याविनाभाव ज्ञात करने के लिये उदाहरणरूप अंगको स्वीकार करना भी अयुक्त है
तदविनाभावनिश्चयार्थं वा विपक्षे बाधकादेव तत् सिद्ध: ।।३।।
सूत्रार्थ–साध्य साधनका अविनाभाव निश्चित करने के लिए भी उदाहरण की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि विपक्षमें बाधक प्रमाणको देखकर ही उसका निश्चय हो जाता है । साध्यके साथ अमुक हेतुका अविनाभाव है इसप्रकारका निर्णय करने के लिए उदाहरणको ग्रहण करना भी प्रयुक्त है, वह निर्णय तो विपक्षमें बाधक प्रमाणसे ही हो जाता है अर्थात् अमुक हेतु विपक्ष में सर्वथा असंभव है, इस प्रकारके बाधक प्रमाणसे ही हेतुका अविनाभाव सिद्ध होता है । हेतुके साध्याविनाभावकी सिद्धि केवल सपक्षसत्त्वसे नहीं होती, क्योंकि सपक्षसत्त्व तो हेत्वाभासमें भी संभव है, जैसे "वह पुत्र काला है, क्योंकि उसका पुत्र है, जिस तरह उसके अन्य पुत्र भी काले हैं" इस प्रकारके तत्पुत्रत्वादि हेत्वाभासोंमें सपक्ष सत्त्व रहता है किन्तु उससे साध्यके साथ व्याप्ति सिद्ध नहीं होती।
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