Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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अपोहवादः
५७७
सर्ववाक्यानामविशेषप्रसंगश्च, सर्वेषां स्वप्रभवेच्छामात्रानुमापकत्वाविशेषात् । अथ 'अनेन शब्देनामुमर्थ प्रतिपादयामि' इत्यभिप्रायो विवक्षा, तत्सूचकत्वेन शब्दानामनुमानत्वम्; तदप्ययुक्तम्; व्यभिचारात् । न हि शुकशारिकोन्मत्तादयस्तथाभिप्रायेण वाक्यमुच्चारयन्ति ।
किंच, समयानपेक्षं वाक्यं तादृशमभिप्रायं गमयेत्, तत्सापेक्षं वा ? अाद्य विकल्पे सर्वेषामर्थप्रतिपत्तिप्रसंगान कश्चिद्भाषानभिज्ञः स्यात् । समयापेक्षस्तु शब्दोऽर्थमेव किं न गमयति ? न ह्ययमाद्
शब्द केवल विवक्षा को ही कहते हैं उसीके अनुमापक है ऐसा माना जाय तो दश दाडिमाः, षट् पूपाः इत्यादि निरर्थक वाक्य और "हे देवदत्त अत्र पागच्छ” इत्यादि सार्थक वाक्य इन दोनों में कोई विशेषता नहीं रहेगी (या तो दोनों सार्थक माने जायेंगे या दोनों निरर्थक माने जायेंगे ) क्योंकि सभी अपनी विवक्षामात्र को कहते हैं अर्थ को तो कहते ही नहीं ? फिर कैसे कह सकते हैं कि अमुक वाक्य अर्थ को कहता है अतः सार्थक है और अमुक वाक्य वैसा नहीं है इत्यादि । दूसरा पक्ष - "इस शब्द द्वारा इस अर्थ का प्रतिपादन करता हूं" ऐसा अभिप्राय होने को विवक्षा कहते हैं और उस विवक्षा के सूचक शब्द होते हैं अतः शब्द विवक्षा के अनुमापक है ऐसा मानना भी अनुचित है क्योंकि इस तरह की मान्यता में भी व्यभिचार आता है, कैसे सो बताते हैं-शुक सारिका पक्षी तथा उन्मत्त पुरुष आदि उपर्युक्त लक्षण वाली विवक्षा से वाक्य का उच्चारण नहीं करते हैं अतः सभी शब्द एवं वाक्य विवक्षा को ही कहते हैं ऐसा नियम करना व्यभिचरित हो जाता है ।
किंच, जिसमें संकेत की अपेक्षा नहीं है वह वाक्य उस प्रकार के अभिप्राय को ( इस शब्द द्वारा इस अर्थ का प्रतिपादन करता हूँ ) जतलाता है अथवा जिसमें संकेत को अपेक्षा होती है वह वाक्य उक्त अभिप्राय को जतलाता है ? प्रथम विकल्प माने तो सभी वाक्यों से सब अर्थों की प्रतिपत्ति होने का प्रसंग प्राप्त होता है फिर तो कोई भी व्यक्ति किसी भी भाषा से अपरिचित नहीं रहेगा ? क्योंकि इस शब्द का यह अर्थ होता है इस अर्थ को घट कहते हैं, इस अर्थ को संस्कृत भाषा में “घटः" कहते हैं, हिंदी भाषा में 'घड़ा' कहते हैं इत्यादि प्रकार से शब्द एवं वाक्य में संकेत किये बिना ही वे शब्दादि उस उस अर्थ को कहने वाले मान लिये हैं। संकेत की अपेक्षा वाले वाक्य उस प्रकार के अभिप्राय को जतला देते हैं ऐसा दूसरा पक्ष माने तो शब्द अर्थ
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