Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 649
________________ Be ११:१:११:३३३३ २० वाक्यलक्षण विचारः 26:56 666666 किं पुनः पदं वाक्यं वा यन्निबन्धनाऽर्थप्रतिपत्तिरित्यभिधीयते ? वर्णानां परस्परापेक्षाणां निरपेक्षः समुदायः पदम् । पदानां तु तदपेक्षाणां निरपेक्ष समुदायो वाक्यमिति । नन्वेवं कथमिदं साधनवाक्यं घटते- 'यत्सत्तत्सर्वं परिणामि यथा घटः, संश्च शब्द:' इति ? 'तस्मात्परिणामी' इत्याकाङ्क्षणात्साकाङ्क्षस्य वाक्यत्वानिष्टेः इत्यप्यचोद्यम्; कस्यचित्प्रतिपत्तुस्तदनाकाङ्क्षत्वोपपत्तेः । निराका 166666666668 Jain Education International वैयाकरणवादी के स्फोटवाद का निराकरण करने के अनंतर प्रश्न होता है कि पद एवं वाक्य किसे कहते हैं जिसके द्वारा कि अर्थ की प्रतीति होती है ? सो यहां उनका निर्दोष लक्षण प्रस्तुत करते हैं- " वर्णानां परस्परा पेक्षाणां निरपेक्षः समुदायः पदम् । पदानां तु तदपेक्षाणां निरपेक्षः समुदायः वाक्यम्" अर्थात् परस्पर में सापेक्ष किन्तु वर्णान्तर से निरपेक्ष ऐसा वर्णों का जो समुदाय है उसको पद कहते हैं, तथा वाक्यांतर गत पद से तो निरपेक्ष और परस्पर पदों में सापेक्ष ऐसे पद समूह का नाम वाक्य है । शंका- निरपेक्ष पदों का समुदाय वाक्य है ऐसा वाक्य का लक्षण करने पर साधन वाक्य किस प्रकार घटित होगा ? क्योंकि जो सत् है वह सर्व परिणामी (क्षणिक) होता है क्योंकि वह सत् रूप है, जैसे घट है, शब्द भी सत् है, इस प्रकार उपनय वाक्य तक अनुमान प्रयोग करने पर भी “इसलिये परिणामी है" इस वाक्यांतर की अपेक्षा रहती ही है । अतः जैन को अनिष्ट ऐसे सापेक्ष पदों का समूह ही वाक्य रूप सिद्ध होता है ? For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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