Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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स्फोटवादः
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सकता है । यदि संस्कार से मतलब स्फोट विषयक ज्ञान से है, सो भी ठीक नहीं है, क्योंकि वर्ण अर्थ का ज्ञान नहीं करा सकते वैसे ही स्फोट का ज्ञान भी उत्पन्न नहीं कर सकते । वर्ण पद आदि और उनके उच्चारण के अनन्तर होने वाली अर्थ प्रतीति इन दोनों को छोड़कर तीसरा स्फोट नामक तत्त्व किसी प्रकार भी प्रतीत नहीं होता है, श्रतः उसकी कल्पना करना निरर्थक है । जब दृष्ट कारण से ही कार्य उत्पन्न हो सकता है तो अदृष्ट कारणांतर की कल्पना करना बुद्धिमत्ता नहीं है । इस प्रकार वैयाकरणों द्वारा मान्य एक, व्यापक, नित्य स्फोट की परिकल्पना सिद्ध नहीं होती है ।
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