Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 653
________________ ६०८ प्रमेयकमलमार्त्तण्डे च्चेत्; जैनमतप्रसंगः- परस्परापेक्षाऽनाकाङ्क्ष पदरूपतापन्नवर्णानां कालप्रत्यासत्तिरूप संघातस्य कथञ्चिद्वर्णेभ्योऽभिन्नस्य जैनोक्तवाक्यलक्षरणानतिक्रमात् । साकाङ्क्षान्योन्यानपेक्षाणां तु तेषां वाक्यत्वे प्राक्प्रतिपादितदोषानुषंगः | एतेन जातिः संघातवत्तिनी वाक्यम्; इत्यपि नोत्सृष्टम् ; निराकाङ्क्षान्योन्यापेक्षपदसंघात - वत्तिन्याः सदृशपरिणाम लक्षणायाः कथश्चित्ततोऽभिन्नाया जातेर्वाक्यत्व घटनात्, अन्यथा संघातपक्षोक्ताशेषदोषानुषंगः । एको बयवः शब्दो वाक्यम्; इत्येतत्तु मनोरथमात्रम् तस्याप्रामाणिकत्वात्, स्फोटस्यार्थप्रतिपादकत्वेन प्रागेव प्रतिविहितत्वात् । क्रमो वाक्यमित्येतत्त संघातवाक्यपक्षान्नातिशेते इति तद्दोषेणेव तद्दुष्टं द्रष्टव्यम् । अन्य से निराकांक्ष ऐसे पद रूपता को प्राप्त हुए वर्णों का काल प्रत्यासत्ति रूप संघात होना वाक्य है, जो कि अपने वर्णों से कथंचित् प्रभिन्न और कथंचित् भिन्न है । यदि उक्त वर्ण संघात रूप वाक्य अन्य वाक्य के पदों से सापेक्ष एवं परस्पर में निरपेक्ष है तब तो पहले बताये हुए दोष प्रायेंगे । अर्थात् वाक्यांतर की अपेक्षा रहेगी तो कभी भी वाक्य से अर्थ की प्रतीति नहीं होगी, क्योंकि आगे आगे वाक्य की अपेक्षा बढ़ती जाने से कोई भी वाक्य पूर्ण नहीं हो पाने से अर्थ बोध नहीं करा सकता । संघात वत्तिनी जाति अर्थात् वर्णों के वर्णत्व को वाक्य कहना भी पहले समान ठीक नहीं, क्योंकि इसमें वाक्यपना तब हो सकता है जब वाक्यांतर निरपेक्ष एवं परस्पर सापेक्ष पदों के संघात में वर्त्तन करने वाली सदृश परिणाम रूप जाति को वाक्य माना जाय, जो कि स्वपदों से कथंचित् भिन्नाभिन्न स्वरूप वाली है, अन्यथा संघात को वाक्य मानने के पक्ष में जो दोष कहे थे वे इस पक्ष में भी लागू होंगे । एक निरंश शब्द को अर्थात् स्फोट को वाक्य कहना तो मनोरथ मात्र है, क्योंकि निरंश स्फोट अप्रामाणिक है । स्फोट अर्थ की प्रतीति कराता है ऐसा मंतव्य का अभी स्फोटवाद प्रकरण में निरसन कर चुके हैं । वर्णों का क्रम वाक्य है ऐसा वाक्य का लक्षण भी संघात वाक्य के समान है कोई भेद नहीं, संघात को वाक्य मानने में जो दोष आता है उसी यह वाक्य लक्षण भी दूषित है ऐसा निश्चय करना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only पक्ष के दोष से www.jainelibrary.org

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