Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे स्ववचनविरोध इत्युक्तम् । ततः प्रामाणिकत्वमात्मनोऽभ्युपगच्छता प्रतीतिसिद्धा वाच्यतार्थस्याभ्युपगन्तव्या।
प्रथम पक्ष कहे तो सिद्ध साध्यता है, क्योंकि अन्यापोहगत वाच्यता ही वस्तुगत वाच्यता नहीं कहलाती है अतः अन्यापोहगत वाच्यता निषेध करने पर भी वस्तुगत वाच्यता का निषेध तो होता ही नहीं इसलिये वस्तु तो शब्द द्वारा वाच्य ही सिद्ध होती है । दूसरा पक्ष-वस्तु में वस्तुगत वाच्यता का निषेध करते हैं ऐसा माने तो स्ववचन विरोध आता है अर्थात् “वस्तु शब्द से अवाच्य है" ऐसा शब्द द्वारा प्रतिपादन करते हैं तो उसका वाच्यपना स्वयं सिद्ध होता है इत्यादि । इस बात को अभी स्वलक्षण का निर्देश्यपना सिद्ध करते समय कहा ही है । अतः अपने मत की ( अथवा आत्मा की ) प्रामाणिकता को मानने वाले बौद्धादि को प्रतीति सिद्ध ऐसी पदार्थ की वाच्यता स्वीकार करना चाहिए अर्थात् शब्द द्वारा वास्तविक अर्थ कहा जाता है न कि काल्पनिक । शब्द अर्थ के अभिधायक हैं न कि अन्यापोह के, गो आदि शब्द सीधे गो अर्थ को कहते हैं न कि अन्य अश्वादि के अपोह को। ऐसा प्रमाणसिद्ध सिद्धांत सभी को स्वीकार करना चाहिये ।
।। अपोहवाद समाप्त ।।
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