Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 642
________________ स्फोटवादः ५६७ समायोगलक्षणः करणस्फोटः, करण द्वयरूपो मात्रिकास्फोटः, मात्रिकासमूहलक्षणोंऽगहारस्फोटो वेति मनोरथमात्रम्; तस्यापि स्वस्वावयवाभिव्यंगयस्य स्वाभिनेयार्थप्रतिपत्तिहेतोरशक्य निराकरणत्वात् । तन्निराकरणे वा शब्दस्फोटा भिनिवेशो दूरतः परित्याज्यः आक्षेपसमाधानानामुभयत्र समानत्वात् : ततः शब्दस्फोटस्वरूपस्य विचार्य माणस्यायोगान्नासौ पदार्थप्रतिपत्तिनिबन्धनं प्रेक्षादक्षैः प्रतिपत्तव्यम् । किन्तु पदं वाक्यं वा तन्निबन्धनत्वेन प्रतिपत्तव्यम् । जैन-यह कथन भी मनोरथ मात्र है, अपने अवयव द्वारा अभिव्यंग्य करने योग्य ऐसे ये हस्तादि स्फोट भी अपने अभिनेय अर्थ की प्रतिपत्ति कराने हेतु है जैसे कि शब्द स्फोट अर्थ की प्रतीति कराने में हेतु है, अतः इन स्फोटों का निराकरण अशक्य है अर्थात् यदि शब्द स्फोट या पदादि स्फोट को स्वीकार करते हैं तो गंध स्फोटादि एवं हस्तस्फोटादि को भी स्वीकार करना होगा ( जो कि आपको अनिष्ट है ) यदि हस्तादि स्फोट का निराकरण करना ही है तो शब्द स्फोट की मान्यता को दूर से ही छोड़ देना चाहिये । अाप इन गंधादि स्फोटों के पक्ष में जो भी प्राक्षेप (शंका) करेंगे वही आक्षेप शब्द स्फोट के पक्ष में आपतित होंगे तथा उन आक्षेपों का जो समाधान ग्राप देंगे वही समाधान गंधादि स्फोट के पक्ष में रहेगा इस तरह उभय पक्ष में समान ही शंका समाधान है । कोई विशेषता नहीं है। इस प्रकार शब्द स्फोट के स्वरूप का विचार करने पर वह विचार के अयोग्य प्रतीत होता है अतः शब्द स्फोट अर्थ की प्रतिपत्ति का कारण नहीं है ऐसा बुद्धिमानों को निश्चय करना चाहिये । अतः शब्द स्फोट अर्थ की प्रतीति नहीं कराता अपितु पद एवं वाक्य अर्थ की प्रतीति कराता है ऐसा सुनिश्चित प्रमाण से सिद्ध होता है । विशेषार्थ-शब्द स्फोट का खंडन करते हुए जैन ने कहा कि अर्थ की प्रतीति शब्द द्वारा न होकर अदृश्य ऐसे स्फोट द्वारा ही होती है तो गंधादि अर्थ को प्रतीति के लिये गंधादि स्फोट भी मानने होंगे एवं क्रिया विशेष की प्रतीति के लिये हस्तादि स्फोट भी मानने होंगे ? इस पर परवादी ने कहा कि अवयव क्रिया का अनुकरण करना ही हस्त आदि स्फोट है अत: इनको मानना व्यर्थ है ? किन्तु यह कथन शब्द विषयक स्फोट में भी घटित होता है, शब्द का अर्थ ही स्फोट है अन्य कुछ नहीं इत्यादि । यहां पर हस्तस्फोट आदि का जो वर्णन किया है वे स्फोट तो केवल शरीर की क्रिया विशेष हैं, नृत्य करते समय हस्त पादादिका जो विचित्र प्रकार से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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