Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेय कमलमार्त्तण्डे
होता है उसकी अपेक्षा लेकर समझाया है कि यदि शब्द स्फोट की कल्पना करे तो इन स्फोटों की कल्पना भी करनी होगी । इस स्फोट नामा वस्तु की कल्पना भर्तृहरि आदि ने की है। यहां प्रथम तो इन परवादियों के मंतव्य पर विचार करेंगे फिर जैनाचार्य का निर्दोष कथन प्रस्तुत करेंगे ।
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वक्ता के मुख से वर्णों का क्रमशः उच्चारण होकर श्रोता के कर्ण जन्य ज्ञान का उत्पाद तथा चिंतन होने तक चारों चीजें होती हैं- नाद, स्फोट, ध्वनि ( व्यक्ति ) और स्वरूप । जैसा कि कहा है
नादै राहत बीजाया मन्येन ध्वनिना सह । आवृत्त परिपाकायां बुद्धौ शब्दोऽवधार्यते ॥ १॥
अर्थ-नाद द्वारा प्राप्त हुआ है संस्कार जिसमें ऐसी बुद्धि में ध्वनि के साथ पूर्ण उच्चारण होने पर शब्द अवधारित होता है । ( पहले इसी प्रकरण में मूल संस्कृत में यह श्लोक आया है किन्तु उसमें पाठ भेद है) यहां पहले नाद फिर संस्कार और फिर ध्वनि होती है ऐसा बताया है । श्रोता जिसकी सहायता से वर्ण ध्वनियों को ग्रहण करने में समर्थ होता है वह नाद शब्द का वाच्य है, नाद के समकाल में ही स्फोट नामा पदार्थ अनुभव में आता है, यह स्फोट नित्य एवं एक हैं और नाद द्वारा प्रगट होता है
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[ वाक्य १८४ । ]
ग्रहण ग्राह्ययोः सिद्धा योग्यता नियता यथा । व्यंग्य व्यंजक भावेन तथैव स्फोट नादयोः ||
अर्थ - जिस प्रकार ग्रहण और ग्राह्य में स्फोट और नाद में व्यंग्य-व्यंजक भाव सम्बन्ध है, व्यंजक है । नाद से नित्य एक ऐसा स्फोट प्रगट होता है । उसका स्वरूप
[ वाक्य १६७ ]
स्वतः सिद्ध योग्यता है उसी प्रकार स्फोट व्यंग्य है और नाद उसका
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"अनेक व्यक्तयभिव्यंग्या जातिः स्फोट इति स्मृता ॥
[' वाक्य ९ ६३ ]
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