Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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स्फोटवादः
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असंकेतिताच्छब्दादर्थप्रतिपत्ते रसम्भवात् । सम्भवे वा द्वीपान्तरादागतस्य गोशब्दाद्गवार्थप्रतिपत्तिः स्यात्, संकेतकरणवैयर्थ्य चासज्येत ।
अत्र प्रतिविधीयते । प्रतीयमानात्पूर्ववर्णध्वंसविशिष्टादन्त्यवर्णादर्थप्रतीतेरभ्युपगमादुक्तदोषाभावः । न चाभावस्य सहकारित्वं विरुद्धम्; वृन्तफलसंयोगाभावस्य अप्रतिबद्धगुरुत्वफलप्रपातक्रियाजनने तद्दर्शनात्, दृष्टं चोत्तरसंयोगं कुर्वत्प्राक्तनसंयोगाभावविशिष्टं कर्म, परमाण्वग्निसंयोगश्च परमाणी तद्गतपूर्वरूपप्रध्वंसविशिष्टो रक्ततामुत्पादयन्प्रतीतः ।
है कि संकेत रहित शब्द से ( स्फोट से ) अर्थ बोध होना असंभव है। यदि संकेत रहित शब्द से पदार्थ की प्रतीति होती तो जिस द्वीप में गायें नहीं होती ऐसे द्वीपांतर से आये हुए व्यक्ति को गो शब्द सुनकर गो अर्थ का प्रतिभास होता ? किन्तु होता तो नहीं, तथा बिना संकेत के ही शब्द से अर्थ ज्ञान होता है तो संकेत करना (यह गो है इस पदार्थ को गो कहते हैं इत्यादि ) भी व्यर्थ हो जाता है। अतः नित्य व्यापक ऐसे स्फोट पदार्थ को मानना चाहिए जिससे कि अर्थ प्रतीति की सिद्धि होवे ?
जैन- अब यहां पर उपर्युक्त स्फोटवाद का निराकरण किया जाता हैस्फोट से अर्थ की प्रतिपत्ति नहीं होती अपितु प्रतीयमान पूर्व वर्ण का ध्वंस विशिष्ट जिसमें हुआ है ऐसे अंतिम वर्ण से अर्थ की प्रतिपत्ति होती है ऐसा सिद्धांत है इससे उक्त दोष ( पूर्व वर्ण का उच्चारण करना व्यर्थ होगा इत्यादि ) नहीं आता। आपने कहा था कि पूर्व वर्ण तो नष्ट हो चुकते हैं वे किस प्रकार अंत्यवर्ण के सहकारी होंगे सो ऐसा नहीं है अभाव के सहकारी होने में कोई विरोध नहीं है, देखा जाता है कि वृत और फल के संयोग का अभाव शाखा से अप्रतिबद्ध हुए गुरु भार वाले फल की गिरने रूप क्रिया को उत्पन्न करने में सहायक होता है, तथा पूर्व संयोग का जिसमें अभाव हो चुका है ऐसा विशिष्ट कर्म ( क्रिया ) उत्तर संयोग को करता हुआ देखा जाता है । पूर्व रूप का जिसमें नाश हो गया है ऐसा परमाणु एवं अग्नि का संयोग परमाणु में रक्तता को उत्पन्न करता हुआ भी प्रतीत होता है अर्थात् मिट्टी आदि के कृष्ण वर्ण के परमाणु अग्नि संयोग को प्राप्त होते हैं तो वे अपने पूर्व के कृष्ण वर्ण का अभाव करके लाल वर्ण को उत्पन्न करते हैं सो लाल वर्ण के उत्पादन में कृष्ण वर्ण का अभाव सहकारी होता ही है । अतः अभाव में भी सहकारीपना सिद्ध होता है ।
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