Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 635
________________ ५६० प्रमेयकमलमार्तण्डे वर्णेन सर्वात्मनाऽस्याभिव्यक्तत्वात् । पदार्थान्तरप्रतिपत्तिव्यवच्छेदार्थ तदुच्चारणमिति चेत; न; तदुच्चारणेपि तत्प्रतिपत्त रेवानुषंगात् । यथाहि "गौः" इति पदस्यार्थो गकारोच्चारणात्प्रतीयते तथौकारोच्चारणात् 'प्रौशनसः' इति पदार्थोपि, तथा च 'गौः' इति पदादेव 'गौः, प्रौशनसः' इत्यर्थद्वयं प्रतीयेत । संशयो वा स्यात्-'किमेकपदस्फोटाभिव्यक्तये गाद्यनेकवर्णोच्चारणं पदान्तरस्फोटव्यवच्छेदेन, कि वानेकपदस्फोटाभिव्यक्तयेऽनेकाद्यवर्णोच्चारणम्' इति।। न च पूर्ववर्णैः स्फोटस्य संस्कारेऽन्त्यो वर्णस्तस्याभिव्यञ्जकः इति न वर्णान्तरोच्चारणवैयर्थ्यम्; अभिव्यक्तिव्यतिरिक्तसंस्कारस्वरूपानवधारणात् । न खलु तत्र तैर्वेगाख्यः संस्कारो निर्वय॑ते; तस्य शंका-अन्य अर्थ की प्रतिपत्ति का व्यवच्छेद करने के लिये दूसरे वर्णों को उच्चारण करना पड़ता है ? अर्थात् केवल एक वर्ण का उच्चारण करने से अपने विवक्षित अर्थ को छोड़कर अन्य अर्थ का प्रतिभास भी हो सकता है अतः उस अन्य अर्थ के प्रतिभास को रोकने के लिये दूसरे वर्णों का उच्चारण करते हैं ? समाधान-ऐसा नहीं है, दूसरे वर्ण का उच्चारण करने पर भी अन्य अर्थ की प्रतिपत्ति हो सकती है, उसका व्यवच्छेद फिर भी नहीं हो सकेगा। कैसे सो बताते हैं-'गौः' इस पद का अर्थ जैसे गकार वर्ण के उच्चारण से प्रतीत होता है वैसे औकार वर्ण के उच्चारण से "प्रौशनसः” पदार्थ भी प्रतीत होता है, इस तरह से तो “गौः" इस एक पद से हो गो और औशनस ( शुक्र ) इन दो वस्तुका प्रतिभास होवेगा। अथवा संशय हो जायगा कि पदांतरके स्फोट का व्यवच्छेद करके एक पद के स्फोट को व्यक्त करने के लिये ग आदि अनेक वर्णों का उच्चारण किया गया है, या अनेक पदों के स्फोट को व्यक्त करने के लिये अनेक वर्गों का उच्चारण किया गया है। अभिप्राय यह है कि पूर्व वर्णादि का उच्चारण करने पर भी निश्चय नहीं हो सकेगा कि यह उच्चारण अनेक पदों के स्फोट को व्यक्त करने के लिये किया है अथवा एक पद के स्फोट को व्यक्त करने के लिये किया है ? वैयाकरणवादी-पूर्व वर्णों द्वारा स्फोट का संस्कार हो जाने पर अंतिम वर्ण उसका अभिव्यंजक बनता है अतः वर्णांतर का उच्चारण व्यर्थ नहीं ठहरता ? । जैन-ऐसा नहीं कह सकते, अभिव्यक्ति को छोड़कर अन्य कोई संस्कार का स्वरूप अवधारित नहीं होता है अर्थात् अभिव्यक्ति ही संस्कार है। परवादी के यहां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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