Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 633
________________ ५८८ प्रमेयकमलमार्तण्डे यद्वा, पूर्ववर्ण विज्ञानाभावविशिष्टः तज्ज्ञानजनितसंस्कारसव्यपेक्षो वाऽन्त्यो वर्णोऽर्थप्रतीत्युत्पादकः । ननु संस्कारस्य कथं विषयान्तरे विज्ञानजनकत्वम्; इत्यप्यचोद्यम्; तद्भावभावितयार्थप्रतीतेरुपलब्धेः । पूर्ववर्ण विज्ञानप्रभवसंस्कारश्च प्रणालिकयाऽन्त्यवर्णसहायतां प्रतिपद्यते; तथाहि-प्रथमवणे तावद्विज्ञानम्, तेन च संस्कारो जन्यते। ततो द्वितीयवर्ण विज्ञानम्, तेन च पूर्वज्ञानाहितसंस्कारसहितेन विशिष्टः संस्कारो जन्यते । एवं तृतीयादावपि योजनीयं यावदन्त्यः संस्कारोऽर्थप्रतिपत्तिजनकान्त्यवर्णसहायः। अथवा. शब्दार्थोपलब्धि निमित्तक्षयोपशमप्रतिनियमादविनष्टा एव पूर्ववर्णसंविदस्तत्संस्काराश्चाऽन्त्यवर्णसंस्कारं विदधति । तथाभूतसंस्कारप्रभवस्मृतिसव्यपेक्षो वान्त्यो वर्ण: पदार्थप्रतिपत्तिहेतुः । अथवा पूर्व वर्ण के ज्ञानका अभाव जिसमें है एवं उस ज्ञान से उत्पन्न हुआ संस्कार जिसमें अपेक्षित है ऐसा अंतिम वर्ण अर्थ के प्रतिभास को उत्पन्न करता है । - शंका- अन्य पदार्थ का संस्कार अन्य में ज्ञान को किस प्रकार उत्पन्न करेगा ? अर्थात् पूर्व के गकारादि वर्ण के ज्ञान एवं संस्कार गो रूप अन्य अर्थ में ज्ञान को कैसे उत्पन्न कर सकते हैं ? समाधान-यह शंका गलत है, "उसके होने पर होना” इस प्रकार से अर्थ प्रतिभास की उपलब्धि देखी जाती है अर्थात् पूर्व वर्ण के ज्ञान के संस्कार के होने पर ही अंत्य वर्ण अर्थ ज्ञान का उत्पादक होता है, अंत्य वर्ण से अर्थ प्रतीति हो रही अतः पूर्व वर्ण ज्ञान के संस्कार अवश्य हैं ऐसा निश्चय हो जाता है । पूर्व वर्ण के ज्ञान से उत्पन्न हुआ संस्कार प्रवाह रूप से अंतिम वर्ण की सहायता को प्राप्त करता है, आगे इसी का स्पष्टीकरण करते हैं- पहले प्रथम वर्ण का ज्ञान होता है उस ज्ञान से संस्कार उत्पन्न होता है, उस संस्कार से दूसरे वर्ग का ज्ञान होता है, पूर्व ज्ञान का प्राप्त हुआ है संस्कार जिसको ऐसा वह द्वितीय वर्ण ज्ञान विशिष्ट संस्कार को उत्पन्न करता है, इस प्रकार तीसरे आदि वर्ण एवं ज्ञानादि में भी लगाते रहना चाहिये जब तक कि अंत्य संस्कार अर्थ प्रतिपत्ति का उत्पादक अंतिम वर्ण को सहायक बने । अथवा शब्द से अर्थ की उपलब्धि होने में निमित्तभूत ज्ञानावरणादि के क्षयोपश का प्रतिनियम इस तरह का होने के कारण अविनष्ट रूप ऐसी पूर्व वर्णों की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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