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अपोहवादः
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अपोहवाद के खण्डन का सारांश
बौद्ध शब्द द्वारा पदार्थ का ज्ञान होना नहीं मानते हैं उनका कहना है कि शब्द पदार्थ के अभाव में भी प्रतीत होते हैं अतः पदार्थों के वाचक न होकर अन्यापोह के वाचक हैं। प्राचार्य का कहना है कि ऐसा सर्वथा नहीं है कोई शब्द अर्थ के अभाव में होते हुए भी अर्थ सद्भाव में होने वाले शब्द भी मौजूद है अतः शब्द को अन्यापोह का वाचक नहीं मानना चाहिए । जो परीक्षा करके प्रयोगों में लाया जायगा वह शब्द अर्थ से व्यभिचरित नहीं होगा। शब्द अन्यापोह को कहता है ऐसा मानना प्रतीति विरुद्ध भी है, पाप गो शब्द से अगो-व्यावृत्ति रूप ज्ञान होना मानते हैं किन्तु गो शब्द से विधि रूप गो का ही ज्ञान उत्पन्न हुआ देखा जाता है । तथा शब्द का वाच्य अपोह है तो सुनने वाले को पहले "अगो" ऐसा सुनाई देना चाहिए ? किन्तु ऐसा नहीं होता यदि होता तो गाय का ज्ञान नहीं हो सकता था । अपोह का लक्षण पर्यु दास अभाव रूप है या प्रसज्य अभाव रूप है ? पर्यु दास अभाव रूप मानने में कोई दोष नहीं आता, आप उसे अगोनिवृत्ति कहते हैं और हम जैन गोत्व सामान्य कहते हैं। तथा अगो निवृत्ति गो है सो क्या है ? गाय का स्वलक्षण है ऐसा कहो तो वह शब्द द्वारा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि आप वस्तु का स्वरूप क्षणिक होने से शब्दगम्य होना नहीं मानते हैं । आप शब्दों का अर्थ अपोह करते हैं सो वृक्ष, हस्ती, गृह, गो, अश्व इत्यादि अनेक सामान्यवाची शब्द हैं इनका परस्पर में अपोह है अर्थात् गो शब्द का अश्व शब्द में अपोह है और अश्व शब्द का गो शब्द में अपोह है इत्यादि सो इन अपोहों में भेद होने का कारण कौन है यह भी सिद्ध नहीं होता, वासना के भेद से अपोह में भेद होना शक्य नहीं, क्योंकि वासना स्वयं ही अवस्तु है । वाच्य के निमित्त से अपोहों में भेद होना भी असम्भव है।
शंका-जैनादि शब्द को विधि रूप से पदार्थ का वाचक मानते हैं सो वह शब्द संकेतित होते हैं या बिना संकेत किये हुए ? संकेत किये हुए हैं तो संकेत हुआ स्वलक्षण में और ग्रहण हुअा अन्य किसी में क्योंकि स्वलक्षण क्षणिक है, अतः शब्द में संकेत का अभाव होने से वह अपोह का वाचक है ऐसा मानते हैं ।
समाधान-- यह कथन असत् है, क्योंकि पदार्थ को स्वलक्षण रूप न मानकर सामान्य विशेषात्मक माना है। अापका कहना है कि शब्द द्वारा स्पष्ट प्रतिभास नहीं
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