Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे विरोधः । न चार्थेऽथिनोऽथित्वादेव प्रवृत्तः शब्दोऽप्रवर्तकः; अध्यक्षादेरप्येवमप्रवर्तकत्वप्रसङ्गात् तदर्थेप्य भिलाषादेव प्रवृत्तिप्रसिद्धः। परम्परया प्रवर्तकत्वं शब्देप्यस्तु विशेषाभावात् ।
का चेयं विवक्षा नाम-किं शब्दोच्चारणेच्छामात्रम्, 'अनेन शब्देनामुम) प्रतिपादयामि' इत्यभिप्रायो वा ? प्रथमपक्षे वक्तृश्रोत्रोः शास्त्रादौ प्रवृत्तिर्न स्यात् । न खलु कश्चिदनुन्मत्तः शब्दनिमित्त च्छामात्रप्रतिपत्त्यर्थं शास्त्रं वाक्यान्तरं वा प्रणेतु श्रोतु प्रवर्तते। दशदाडिमादिवाक्यैः सह
भूत अर्थ की प्रतीति होती है उस प्रकार संकेत रूप सामग्री की जिसमें अपेक्षा है ऐसे शब्द से शब्द के अर्थ की प्रतीति होती है, यदि ऐसा नहीं होता तो बाह्य घटादि पदार्थ में शब्द से प्रतिभास एवं प्रवृत्ति आदि नहीं होनी थी।
____ शंका-बाह्य पदार्थ में अर्थ के इच्छुक पुरुष की प्रवृत्ति होने का कारण अथिपना ही है अर्थात् उक्त अर्थ की इच्छा होने के कारण प्रवृत्ति होती है न कि शब्द से अतः शब्द को अप्रवर्तक माना जाता है ?
समाधान-तो फिर प्रत्यक्षादि को भी इसी तरह अप्रवर्तक मानना होगा क्योंकि प्रत्यक्षभूत पदार्थ में भी अर्थ की इच्छा होने के कारण ही प्रवृत्ति होती है । प्रत्यक्ष ज्ञान परम्परा से अर्थ में प्रवृत्ति कराता है अतः उसको प्रवर्तक माना है ऐसा कहो तो शब्द भी परम्परा से अर्थ में प्रवृत्ति कराता है अतः उसको भी प्रवर्तक मानना चाहिये । उभयत्र समानता है कोई विशेषता नहीं है ।
तथा विवक्षा किसे कहना यह भी विचारणीय है शब्दोच्चारण की इच्छा होने मात्र को विवक्षा कहते हैं अथवा इस शब्द द्वारा इस अर्थ का प्रतिपादन करता हूँ ऐसा अभिप्राय का होना विवक्षा है ? प्रथम पक्ष माने तो वक्ता और श्रोता की शास्त्रादि में प्रवृत्ति नहीं हो सकेगी। इसी का स्पष्टीकरण करते हैं-कोई भी बुद्धिमान् वक्ता और श्रोता शब्दोच्चारण की इच्छा मात्र के लिये और केवल उसको जानने के लिए शास्त्र या वाक्यांतर का प्रणयन एवं श्रवण के लिये प्रवृत्त नहीं होते अर्थात् वक्ता अपनी विवक्षा को जानने के लिये शब्दोच्चारण करता हो और श्रोता वक्ता की विवक्षा को जानने के लिये शब्दोच्चारण को सुनता हो ऐसा नहीं है। यदि ऐसा स्वीकार करेंगे तो दशदाडिमादि संदर्भ रहित वाक्यों के समान सभी वाक्य संदर्भ रहित बन जायेंगे क्योंकि सभी वाक्य समान रूप से अपनी इच्छा मात्र के अनुमापक हैं। अभिप्राय यह है कि
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