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प्रमेयकमलमार्तण्डे
कुतो व्युत्पन्नानां तयोपपत्त्यन्यथाऽनुपपत्तिभ्यां प्रयोगनियम इत्याशङ्कय हेतुप्रयोगो हीत्याद्याहहेतुप्रयोगो हि यथाव्याप्तिग्रहणं विधीयते, सा च तावन्मात्रेण व्युत्पन्नैरवधार्यते इति ॥९६।।
यतो हेतोः प्रयोगो व्याप्तिग्रहणानतिक्रमेण विधीयते। सा च व्याप्तिस्तावन्मात्रेण तथोपपत्त्यन्यथानुपपत्तिप्रयोगमात्रेण व्युत्पन्नैनिश्चीयते इति न दृष्टान्तादिप्रयोगेण व्याप्त्यवधारणार्थेन किञ्चित्प्रयोजनम् । नापि साध्यसिद्धयर्थं तत्प्रयोगः फलवान्
तावताच साध्य सिद्धिः ॥९७।। यतस्तावतैव चकार एवकारार्थे निश्चितविपक्षासम्भवहेतुप्रयोगमात्रेणैव साध्यसिद्धिः ।
सूत्रार्थ – यह प्रदेश अग्निमान है क्योंकि धूमपनाकी उपपत्ति है । यह तथोपपत्ति हेतु प्रयोग हुआ । अथवा यह देश अग्निमान है ( अग्नियुक्त ) क्योंकि धूमपनेकी अन्यथानुपपत्ति है । यह अन्यथानुपपत्ति हेतु प्रयोग है । व्युत्पन्न पुरुषोंके प्रति तथोपपत्ति अथवा अन्यथानुपपत्ति प्रयोगका नियम किस कारणसे करते हैं ? ऐसी आशंका का समाधान करते हैंहेतु प्रयोगो हि यथा व्याप्तिग्रहणं विधीयते, सा च तावन्मात्रेणव्युत्पन्नै रवधार्यते ।।६६।।
सूत्रार्थ - उस तरहका हेतुप्रयोग करते हैं कि जिस तरहसे व्याप्तिका ग्रहण किया जाय, अतः वह व्याप्ति उतने मात्रसे ( हेतु प्रयोग मात्रसे) व्युत्पन्न पुरुषों द्वारा अवधारित ( निश्चित ) की जाती है। व्याप्ति ग्रहणका अनतिक्रम रखते हुए हेतुके प्रयोगका विधान किया जाता है, और वह व्याप्ति भी तथोपपत्ति अथवा अन्यथानुपपत्ति प्रयोग मात्रसे व्युत्पन्नमति द्वारा निश्चित की जाती है। इसीलिये दृष्टांतादिके प्रयोगसे व्याप्ति अवधारण करना आदि कुछ भी प्रयोजन नहीं रहता ।
तथा साध्यकी सिद्धिके लिये भी दृष्टांतादिका प्रयोग प्रयोजनभूत नहीं होता है
__ तावता च साध्यसिद्धिः ।।१७।। सूत्रार्थ-उतने तथोपपत्ति आदि रूप हेतु मात्रसे ही साध्यकी सिद्धि भी हो जाती है। सूत्रोक्त च शब्द एवकार अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अर्थात् निश्चित विपक्ष
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