Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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अपोहवादः
५३५ युक्तः; अन्यथा गोपालघटिका दिधूमस्याग्निव्यभिचारोपलम्भात्पर्वतादिप्रदेशवत्तिनोपि स स्यात्, तथा च कार्यहेतवे दत्तो जलाञ्जलिः। सकलशून्यता च, स्वप्नादिप्रत्ययानां क्वचिद्विभ्रमोपलम्भतो निखिलप्रत्ययानां तत्प्रसङ्गात् । 'यत्नतः परीक्षितं कार्य कारणं नातिवर्त्तते' इत्यन्यत्रापि समानम्-'यत्नतो हि शब्दोर्थवत्त्वेतरस्वभावतया परीक्षितोर्थं न व्यभिचरति' इति । तथा चान्यापोहमात्राभिधायित्वं शब्दानां श्रद्धामात्रगम्यम् ।
किंच, अन्यापोहमात्राभिधायित्वे प्रतीतिविरोधः-गवादिशब्देभ्यो विधिरूपावसायेन प्रत्ययप्रतीते: । अन्य निषेधमात्राभिधायित्वे च तत्रैव चरितार्थत्वात्सास्नादिमतीर्थस्यातोऽप्रतीते: तद्विषयाया
के सद्भाव में होने वाले शब्दों में लगाना ठीक नहीं यदि इस तरह अन्य का व्यभिचार दोष अन्य में लगायेंगे तो गोपालघटिका आदि में होने वाला धूम अग्नि से व्यभिचरित होता हुआ देखकर उस व्यभिचार को पर्वतादि प्रदेशस्थ धूम में भी लगाना चाहिए ? और इस प्रकार धूमादि हेतु व्यभिचार युक्त मानने पर कार्य हेतु के लिये जलांजलि ही दी जायगी, अर्थात् कार्य हेतु की मान्यता ही नष्ट हो जायगी। दूसरा दोष सकल शून्यता का आयेगा, अर्थात् अन्य का व्यभिचार किसी अन्य में लगाते हैं तो स्वप्नादि में होने वाला अर्थ प्रतिभास भ्रांत हुआ देखकर सभी प्रतिभासों को भ्रांत मानना होगा ? क्योंकि अन्य का दोष अन्य में लगा सकते हैं ? और इस तरह सभी प्रतिभास ( ज्ञान ) भ्रांत हैं तो इनके विषयभूत पदार्थ भी भ्रांत ( काल्पनिक ) कहलायेंगे । और ज्ञान तथा पदार्थ भ्रांत हैं तो सकल शून्यता आ ही जाती है ।
बौद्ध - यह प्रसंग नहीं पाता क्योंकि यत्न से परीक्षा किया हुया कार्य कारण के साथ व्यभिचारित नहीं होता अर्थात् पर्वतादि का धूम रूप कार्य अपने अग्नि रूप कारण के साथ व्यभिचरित नहीं होता अत: सब कार्य हेतु सदोष होना या सकल शून्यता पाना इत्यादि दोष नहीं पाते ।
जैन – ठीक है, यही बात शब्द के विषय में है, कोई कोई शब्द अर्थ के विद्यमान नहीं होते हुए उपलब्ध होने पर भी अन्य शब्द तो ऐसे नहीं है अर्थात् यत्न से परीक्षा करने पर निर्णीत होता है कि अमुक शब्द अर्थवान् है और अमुक शब्द नहीं इस प्रकार परीक्षित हुया शब्द कभी भी व्यभिचरित नहीं होता। अतः शब्द केवल अन्यापोह के अभिधायक है ऐसा कहना श्रद्धा मात्र है।
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