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शब्द सम्बन्धविचार:
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नित्य और कथंचित अनित्य होते हैं, स्याद्वाद द्वारा यह सब घटित हो सकता है । किंतु मीमांसक, बौद्ध आदि परवादी के यहां प्रत्येक वस्तु को एक धर्मात्मक माना जाता है अतः कुछ भी सिद्ध नहीं होता, शब्द को नित्य मानकर मीमांसक चाहे जितना विवाद करे और बौद्ध अनित्य का पक्ष लेकर झगड़ा करे किन्तु सार नहीं निकलता, इनकी अच्छी युक्तियां भी एकांत के कारण सदोष हो जाती हैं अतः शब्द और अर्थ के संबंध को नित्य मानना होगा और प्रनित्य होते हुए भी अनादि प्रवाह रूप मानना होगा । इस प्रकार शब्द में सहज स्वाभाविक वाचक शक्ति है और अर्थ में वाच्य शक्ति है अतः घट प्रादि शब्द द्वारा घट पदार्थ का ज्ञान होता है ऐसा मानना चाहिये, तथा शब्द द्वारा अर्थ बोध होने में संकेत भी कारण है ऐसा निर्बाध सिद्ध हुआ ।
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