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अपोहवादः
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कल्प्यते तत्सर्वं व्यवच्छेद्याकारणालम्ब्यमानं प्रमेयादिस्वभावमेवावतिष्ठते । न ह्यविषयीकृतं व्यवच्छेत्त शक्यमतिप्रसंगात् । न च सम्बन्धिभेदो भेदकः, अन्यथा बहुषु शावलेयादिव्यक्तिष्वेकस्याऽगोपोहस्याऽभावप्रसंगः । यस्य चान्तरंगाः शावलेयादिव्यक्तिविशेषा न भेदकाः 'तस्याऽश्वादयो भेदकाः' इत्यतिसाहसम् ! सम्बन्धिभेदाच्च वस्तुन्यपि भेदो नोपलभ्यते कि मुताऽवस्तुनि; तथाहि-देवदत्तादिकमेकमेव वस्तु युगपत्क्रमेण वानेकैराभरणादिभिर भिसम्बद्धयमानमनासादितभेदमेवोपलभ्यते ।
भवतु वा सम्बन्धिभेदाभेदः; तथापि-वस्तुभूतसामान्यानभ्युपगमे भवतां स एवापोहाश्रयः सम्बन्धी न सिद्धिमासादयति यस्य भेदात्तभेदः स्यात् । तथाहि-गवादीनां यदि वस्तुभूतं सारूप्यं
सम्बन्धियों के भेद से अपोहों में भेद करना असंभव है। प्रमेय आदि शब्दों में जिस किसी को भी व्यवच्छेद्यरूप से कल्पित किया जायगा वह सब ही व्यवच्छेद्यग्राकार से विषय हो जाने से प्रमेयादि स्वभावरूप हो स्थित होता है। जो अविषयीकृत होता है वह तो व्यवच्छेद होने योग्य ( जानने योग्य ) ही नहीं होता, यदि अविषय को व्यवच्छेद्य मानेंगे तो आकाश पुष्पादि को भी व्यवच्छेद्य मानने का अतिप्रसंग पायेगा। तथा सम्बन्धियों के भेद अपोहों में भेद करते हैं ऐसा बौद्ध का कथन गलत ही है, यदि ऐसा मानेंगे तो बहुत से शाबलेयादि गो व्यक्तियों में एक ही अगो रूप अपोह पाया जाता है उसका अभाव होवेगा । अव्यभिचारीपने से उन्हीं में नियत रूप से रहने वाले अंतरंग शाबलेय आदि गो व्यक्तियां जिस गोत्व सामान्य रूप अपोह के भेद नहीं करती हैं उस गोत्व सामान्य के भेद अश्वादिक करते हैं ऐसा बौद्ध का कहना तो अतिसाहस पूर्ण है अर्थात् ऐसा कहना सर्वथा अयुक्त है। सम्बन्धी पदार्थों के भेद से भेद होने की मान्यता भी असत् है, सम्बन्धी के भेद से तो वस्तु में भी भेद होना अशक्य है फिर अवस्तुरूप अपोह में तो क्या हो सकता है । इसीको बताते हैं - एक देवदत्तादि कोई पदार्थ है वह युगपत् या क्रमशः अनेक वस्त्राभरण आदि से सम्बन्ध को प्राप्त होता हया भी अनेक या भेद रूप नहीं हो जाता एक ही रहता है। उसी प्रकार सम्बन्धी के भेद से अपोह में भेद होना असंभव है।
__ आपके हटाग्रह से मान लेवे कि सम्बन्धी के भेद से अपोह में भेद होता है तो भी आपके मत में सामान्य को वास्तविक पदार्थ नहीं माना अतः अपोह का आश्रय भूत सम्बन्धी ही सिद्ध नहीं होता जिसके कि भेद से अपोह में भेद करना है। आगे इसीका खुलासा करते हैं – यदि गो आदि पदार्थों में वास्तविक सादृश सामान्य सिद्ध
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