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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
अथान्यथा विशेष्येपि स्याद्विशेषणकल्पना | तथा सति हि यत्किञ्चित्प्रसज्येत विशेषरणम् ||५|| अभावगम्यरूपे च न विशेष्येस्ति वस्तुता । विशेषितमपोहेन वस्तु वाच्यं न तेऽस्त्यतः || ६ ||”
[ मी० श्लो० प्रपोह० श्लो० ८६ - ६१ ]
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" शब्देनागम्यमानं च विशेष्यमिति साहसम् । तेन सामान्यमेष्टव्यं विषयो बुद्धिशब्दयोः ।।'
[ मी० श्लो० प्रपोह० श्लो० ६४ ]
इतश्च सामान्यं वस्तुभूतं शब्दविषयः; यतो व्यक्तीनामसाधारण वस्तुरूपाणामशब्दवाच्यत्वान्न व्यक्तीनामपोह्य ेत, अनुक्तस्य निराकर्तुमशक्यत्वात्, अपोह्य ेत सामान्यं तस्य वाच्यत्वात् । श्रपोहानां
है तो वह उसका विशेषण है ऐसा किस प्रकार कह सकते हैं ? || ४ || यदि अन्य प्रकार के विशेष्य में अन्य ही कोई विशेषण की कल्पना की जा सकती है तब तो चाहे जिसका चाहे जो विशेषण बन सकता है ||५|| तथा विशेष्य रूप वस्तु का प्रभाव रूप प्रतिभास होना स्वीकार करे तो उसकी वस्तुता ही समाप्त हो जाती है । अपोह विशेषण युक्त स्वलक्षण का होना भी अशक्य है क्योंकि आपके यहां स्वलक्षण रूप वस्तु को अवाच्य माना है || ६ || बड़ा आश्चर्य है कि शब्द द्वारा अगम्य भी है और वही विशेष्य भी है ऐसा कहना तो प्रतिसाहसपूर्ण अनुचित है । इस प्रकार यहां तक के विवरण से यह स्पष्ट होता है कि अपोह और शब्द में ( अथवा शब्द का अर्थ प्रन्यापोह करने पर ) वाच्य वाचक भाव सम्बन्ध नहीं है, इसलिये जो शब्द द्वारा वाच्य हो एवं बुद्धि द्वारा गम्य हो ऐसा गोत्वादि सामान्य ही गो आदि शब्द का विषय है ऐसा मानना चाहिए । क्योंकि पोह का अर्थ सामान्य है वह काल्पनिक होता है उसी को शब्द द्वारा कहा जाता है इत्यादि बौद्धाभिमत सर्वथा अयुक्त सिद्ध हो चुका है ॥७॥
शब्द के विषयभूत गोत्वादि सामान्य को वास्तविक इसलिये माना जाता है कि गो आदि विशेषों का ग्रपोह किया नहीं जाता, क्योंकि असाधारण स्वलक्षण रूप गो आदि विशेष शब्द द्वारा वाच्य नहीं है जो अवाच्य होता है उसका निराकरण ( अपोह) करना असंभव है, सामान्य का निराकरण शक्य है क्योंकि वह वाच्य है । अश्वादि
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