Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
तच्चास्य नास्तीत्युक्तम् । ततः प्रतिनियताच्छब्दात्प्रतिनियतेऽर्थे प्राणिनां प्रवृत्तिदर्शनासिद्ध शब्दप्रत्ययानां वस्तुभूतार्थविषयत्वम् । प्रयोगः-ये परस्परासंकीर्णप्रवृत्तयस्ते वस्तुभूतार्थ विषयाः यथा श्रोत्रादिप्रत्ययाः, परस्पराऽसंकीर्णप्रवृत्तयश्च दण्डीत्यादिशाब्दप्रत्यया इति। न चायमसिद्धो हेतुः; 'दण्डी विषाणी' इत्यादिधीध्वनी हि लोके द्रव्योपाधिको प्रसिद्धौ, 'शुक्ल: कृष्णो भ्रमति चलति' इत्यादिको तु गुणक्रियानिमित्तौ, ‘गौरश्वः' इत्यादी सामान्यविशेषोपाधी, 'इहात्मनि ज्ञानम्' इत्यादिको सम्बन्धोपाधिकावेवेति प्रतीतेः ।
इसलिये बौद्ध का निम्नलिखित कथन अयुक्त सिद्ध होता है कि जो ज्ञान के प्रतिबिंब स्वरूप है वह मुख्य अन्यापोहत्व है और विजातीय से व्यावृत्तभूत स्वलक्षण के निमित्त से होने वाला अन्यापोहत्व औपचारिक है। अन्यापोह को वाच्य रूप स्वीकार करने पर ही मुख्य अन्यापोहत्व और औपचारिक अन्यापोहत्व ऐसा भेद करना युक्ति संगत होता है किन्तु अन्यापोह वाच्य हो नहीं सकता ऐसा अभी अभी सिद्ध हो चुका है। इस प्रकार शब्द का अर्थ अपोह है ऐसा सिद्ध नहीं होता इसलिये प्रतिनियत शब्द से प्रतिनियत अर्थ में प्राणियों की प्रवृत्ति होती हुई देखकर निश्चित हो जाता है कि शब्द जन्य ज्ञानों का विषय परमार्थभूत पदार्थ हैं। अनुमान प्रयोग - जिन ज्ञानों की प्रवृत्तियांएक दूसरे की अपेक्षा किये बिना परस्पर असंकीर्ण होती हैं वे ज्ञान परमार्थभूत वस्तु को विषय करने वाले होते हैं, जैसे कर्णादि से होने वाले ज्ञान परस्पर की अपेक्षा से रहित असंकीर्ण होते हैं, "दण्डी” इत्यादि शब्द जन्य ज्ञान भी परस्पर में असंकीर्ण है अतः परमार्थभूत वस्तु विषयक हैं। यह परस्पर असंकीर्ण प्रवृत्ति रूप हेतु प्रसिद्ध भी नहीं, क्योंकि 'दण्डी' विषाणी-दण्डा वाला, सींग वाला इत्यादि रूप प्रतीति और शब्द ये दोनों द्रव्य की उपाधि रूप से अर्थात् द्रव्य के निमित्त से होने वाले लोक में प्रसिद्ध ही है । “शुक्ल कृष्ण" तथा "चलता है, घूमता है" इत्यादि शब्द और ज्ञान तो गुण और क्रिया के निमित्त से प्रवृत्त होते हैं । “गो अश्व' इत्यादि शब्द तथा ज्ञान तो सामान्य और विशेष उपाधि निमित्तक अर्थात् गोत्व सामान्य और उससे व्यावृत्त होना रूप विशेष इनसे प्रवृत्त होते हैं । "इस यात्मा में ज्ञान है" इत्यादि में होने वाले शब्द तथा ज्ञान सम्बन्ध निमित्तक हैं, इस प्रकार प्रतीति सिद्ध बात है कि शाब्दीक ज्ञान परमार्थ वस्तु को विषय करते हैं।
इस तरह शब्द का वाच्य अन्यापोह न होकर वास्तविक गो आदि पदार्थ ऐसा सिद्ध होने पर अब यहां पर बौद्ध अपना विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करते हैं
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