Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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अपोहवादः
५५७ यच्चोक्तम्- "तत्प्रतिबिम्बकं च शब्देन जन्यमानत्वात्तस्य कार्यमेवेति कार्यकारणभाव एव वाच्यवाचकभावः' [ ] तदप्ययुक्तम्; शब्दाद्विशिष्टसंकेतसव्यपेक्षाबाहयार्थे प्रतिपत्तिप्रवृत्तिप्राप्तिप्रतीतेः स एवास्यार्थी युक्तः, न तु विकल्पप्रतिबिम्बकमात्रं शब्दात्तस्य वाच्यतयाऽप्रतीतेः।
अतोऽयुक्तम् - "प्रतिबिम्बस्य मुख्यमन्यापोहत्वं विजातीयव्यावृत्तस्वलक्षणस्यान्यव्यावृत्तरचौपचारिकम्' [
] इति । अन्यापोहस्य हि वाच्यत्वे मुख्योपचारकल्पना युक्तिमती,
को पारमार्थिक स्वीकार किया जाय ! किन्तु आपने पदार्थ मात्र को काल्पनिक माना है अतः उक्त कथन बनता नहीं। तथा जिसे आप विजातीय पदार्थ से व्यावृत्ति होना कहते हैं अर्थात् गो शब्द विजातीय अश्वादि से गो अर्थों को व्यावृत्त करता है वह भी उन गो व्यक्तियों में होने वाले समान परिणाम रूप वस्तुभूत गोत्व धर्म के निमित्त से होता है, यह तो नाम मात्र का भेद है कि विजातीय व्यावृत्ति और समान परिणाम, गो व्यक्तियां समान परिणाम के कारण विजातीय से व्यावृत्ति होती है अथवा विजातीय से पृथक होने के कारण उनमें समान परिणाम है । समान परिणाम अर्थात् गोत्व आदि सामान्य एक वास्तविक धर्म है ऐसा स्वीकार करने पर ही उपयुक्त कथन सिद्ध हो सकता है अन्यथा नहीं ।
बौद्ध का कहना है कि ज्ञान में अर्थका प्रतिबिम्ब शब्द द्वारा उत्पन्न होता है अतः वह शब्द का कार्य है, इसलिये वाच्य वाचक भाव को कार्य कारण भाव रूप मानना चाहिये ? सो यह अयुक्त है, क्योंकि विशिष्ट संकेत की अपेक्षा रखने वाले शब्द से गो, घट, पट आदि बाह्य पदार्थ में प्रतिपत्ति होने पर एवं प्रवृत्ति और प्राप्ति होने पर ऐसा कह सकते हैं कि वहो इस शब्द का अर्थ है, केवल विकल्प ज्ञान में प्रतिबिंबित होने मात्र से नहीं कह सकते, ज्ञानके प्रतिबिंब स्वरूप पदार्थ तो शब्द से वाच्य होता हुया प्रतीत ही नहीं होता।
भावार्थ - गो ग्रादि शब्द किसको कहते हैं ऐसा बौद्ध के प्रति प्रश्न होने पर विज्ञानाद्वैतवादी बौद्ध ने उत्तर दिया कि जो ज्ञान में प्रतिबिंबित होता है वह शब्द द्वारा वाच्य होता है तब जैनाचार्य ने कहा कि यह बात तो तब संभव है जब उस वाच्यार्थ को परमार्थभूत स्वीकार करे किन्तु विज्ञानाद्वैतवादी ने ज्ञानको ही परमार्थभूत माना है बाह्यार्थ को नहीं, अतः अमुक शब्द का अमुक वाच्य है इत्यादि व्यवस्था होना अशक्य है।
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