Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे साविति चेत्, पारम्पर्येणासौ तद्गोचरो भवति, न वा ? यदि न भवति; तहि 'साक्षात्' इति विशेषणं व्यर्थम् । अथ भवति; तहि तज्ज्ञा(तज्जा)प्रतीतिः किमिन्द्रियजप्रतीतितुल्या, तद्विलक्षणा वा ? यदि तत्तुल्या; तदा 'शब्दाप्रत्येति विनष्टाक्षो न तु प्रत्यक्षमीक्षते' इत्यनेन विरोधः । तद्विलक्षणा चेत्, न तर्हि प्रतीतिवैलक्षण्यं विषयभेदसाधनम्, एकत्रापि विषये तदभ्युपगमात् ।
दाहशब्देन चात्र कोर्थोभिप्रेत:-किमग्निः, उष्णस्पर्शः, रूपविशेषः, स्फोटः, तदुःखं वा ? अस्तु यः कश्चित्, क्मेिभिर्विकल्पैर्भवतां सिद्धमिति चेत् ? एतेषां मध्य योर्थोभिप्रेतो भवतां तेनार्थेनार्थवत्त्वप्रसिद्ध : तस्यानर्थविषयत्वाभावः सिद्ध इति ।
जैन-तो फिर परम्परा से वह अर्थ शब्द के गोचर होता है ? अथवा परंपरा से भी नहीं होता ? यदि परम्परा से भी शब्द के गोचर नहीं होता तो साक्षात् गोचर नहीं होता ऐसा उक्त वाक्य में साक्षात् विशेषण देना व्यर्थ ठहरता है। अर्थ परंपरा से शब्द के गोचर होता है ऐसा माने तो वह शब्द से होने वाली अर्थ की प्रतीति इन्द्रियज प्रतीति के समान है अथवा उससे विलक्षण है ? यदि इन्द्रियज प्रतीति के समान है तो अंध पुरुष शब्द से अर्थ को जानता है किन्तु उस अर्थ को प्रत्यक्ष तो नहीं देखता है अर्थात् चक्षु ग्राह्य अर्थ अन्य है और शब्द गोचर अर्थ अन्य है ऐसा आपने पहले कहा था उस कथन के साथ विरोध प्राता है ? क्योंकि यहां पर शब्दज प्रतीति और इन्द्रियज प्रतीति इन दोनों को समान मान लिया। इन्द्रियज प्रतीति से शब्दज प्रतीति विलक्षण हुआ करती है ऐसा दूसरा पक्ष कहो तो अाप बौद्ध का वह सिद्धांत गलत ठहरता है कि-"प्रतीति के विलक्षण होने से अर्थात् भिन्न भिन्न प्रतीति के होने से ही प्रतीति के विषयभूत पदार्थों के भेद सिद्ध होते हैं" क्योंकि यहां पर एक विषय में भी प्रतीति भेद मान लिया । अभिप्राय यह है कि आप "प्रमेय द्वैविध्यात् प्रमाण द्वैविध्यम् – प्रमेय दो प्रकार का होने से प्रमाण दो प्रकार का होता है" ऐसा मानते हैं अर्थात् प्रमेय सामान्य और विशेष के भेद से दो प्रकार का है इसलिये उनको जानने के लिये प्रमाण भी दो प्रकार के प्रत्यक्ष और अनुमान मानने पड़ते हैं, किन्तु यहां एक ही प्रमेय अर्थात् विषय में दो विलक्षण प्रतीतियों का होना स्वीकार किया।
दाह शब्द द्वारा अन्य ही अर्थ प्रतीत होता है इत्यादि पूर्वोक्त कथन में दाह शब्द से कौनसा अर्थ लेना इष्ट है । अग्नि, उष्णस्पर्श, रूपविशेष, स्फोट अथवा. दाह से होने वाला दुःख ?
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