Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे किंच, अपोहलक्षणं सामान्यं वाच्यत्वेनाभिधीयमानं पर्यु दासलक्षणं चाभिधीयेत, प्रसज्यलक्षणं वा? प्रथमपक्षे सिद्धसाध्यतायदेव ह्यगोनिवृत्तिलक्षणं सामान्यं गोशब्देनोच्यते भवतातदेवास्माभिर्गोत्वाख्यं भावलक्षणं सामान्यं गोशब्दवाच्य मित्यभिधीयेत, अभावस्य भावान्तरात्मकत्वेन व्यवस्थितत्वात् ।
कश्चायं भवतामश्वादिनिवृत्तिस्वभावो भावोऽभिप्रेत: ? न तावदसाधारणो गवादिस्वलक्षणात्मा; तस्य सकल विकल्पगोचरातिक्रान्तत्वात् । नापि शावलेयादिव्यक्तिविशेष.; असामान्यप्रसंगतः । यदि गोशब्दः शावलेयादिवाचकः स्यातहि तस्यानन्वयान स सामान्य विषयः स्यात् । तस्मात्सर्वेषु सजातीयेषु शावलेयादिपिण्डेषु यत्प्रत्येक परिसमाप्तं तन्निबन्धना गोबुद्धिः, तच्च गोत्वाख्यमेव सामान्यम् । तस्याऽगोऽपोहशब्देनाभिधानान्नाममात्रं भिद्येत । उक्तञ्च
किंच, बौद्ध मत में शब्द का वाच्य अपोह सामान्य माना है सो वह अपोह पर्यु दास लक्षण वाला है या प्रसज्य लक्षण वाला है ? प्रथम पक्ष में सिद्ध साध्यता है ( सिद्ध को ही सिद्ध करना है ) क्योंकि जिसको आप अगो निवृत्तिरूप सामान्य गो शब्द द्वारा वाच्य होना मानते हैं उसी को हम जैन गोत्व नामधेय सद्भावरूप सामान्य गो शब्द द्वारा वाच्य होना मानते हैं अर्थात् पाप उस सामान्य को अगो व्यावृत्ति नाम देते हैं और हम गोत्व सामान्य नाम देते हैं, क्योंकि पर्युदास लक्षण वाला अभाव भावांतर स्वभाव वाला होता है ।
आपके मत में यह अश्वादि की निवृत्ति ( अगो व्यावृत्तिरूप अन्यापोह ) स्वभाव वाला पदार्थ कौनसा है ? असाधारण गो आदि स्वलक्षणरूप पदार्थ अर्थात् क्षणिक निरंश निरन्वयरूप पदार्थ ( बौद्ध मत में स्वलक्षण को क्षणिक निरंश एवं निरन्वय माना है ) तो हो नहीं सकता क्योंकि यह स्वलक्षणरूप पदार्थ संपूर्ण विकल्पों के अगोचर है । अश्वादि की निवृत्तिरूप स्वभाव वाला पदार्थ शाबलेयादि व्यक्ति विशेषरूप ( चितकबरी गो आदि विशेष गो रूप ) है ऐसा माने तो असामान्य का प्रसंग पाता है ( अर्थात सामान्य का अपोह असामान्य है ऐसा अर्थ होता है और असामान्य तो विशेष ही है किन्तु बौद्ध शब्द द्वारा केवल सामान्य ही वाच्य होता है ऐसा मानते हैं ) तथा यदि गो शब्दको शाबलेयादि विशेष का वाचक मानेंगे तो अन्वय नहीं होने से उसका सामान्य विषय नहीं बन सकता । इसलिये सभी सजातीय शाबलेयादि गो व्यक्तियों में जो प्रत्येक में परिसमाप्त होकर रहता है तथा जिसके निमित्त से गो का ज्ञान होता है वह गोत्व नामका सामान्य है और वह गो शब्द द्वारा
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