Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
४५०
प्रमेयकमलमार्तण्डे नरर चितवचनरचनाऽविशिष्टास्ते पौरुषेयाः यथाऽभिनवकूपप्रासादादिरचनाऽविशिष्टा जीर्णकूपप्रासादादयः, नररचितवचनाऽविशिष्टं च वैदिकं वचन मिति ।
न चात्राश्रयासिद्धो हेतुः; वैदिकीनां वचनरचनानां प्रत्यक्षतः प्रतीतेः। नाप्य प्रसिद्धविशेषण: पक्षः; अभिनवकूपप्रासादादौ पुरुषपूर्वकत्वेनास्य साध्यविशेषणस्य सुप्रसिद्धत्वात् । न च हेतोः स्वरूपासिद्धत्वम्; तद्वचनरचनासु विशेषग्राहकप्रमाणाभावेनास्याऽभावात् ।
न चाप्रामाण्याभावलक्षणो विशेषस्तत्रेत्यभिधातव्यम्; तस्य विद्यमानस्यापि तन्निराकारकत्वाभावात् । यादृशो हि विशेषः प्रतीयमानः पौरुषेयत्वं निराकरोति तादृशस्यास्याऽभावादऽविशिष्टत्वम् न पुनः सर्वथा विशेषाभावात्, एकान्तेनाऽविशिष्टस्य कस्यचिद्वस्तुनोऽभावात् । अप्रामाण्याभावलक्षणश्च
प्रतिपादन होता है, यदि ऐसी बात नहीं होती तो उन अर्थोके भिन्न भिन्न संकेत हुना करते हैं उनकी कल्पना व्यर्थ ठहरती। इसलिये निश्चय होता है कि मनुष्यों द्वारा रचे हुए शब्दोंके समान ही जो शब्द हैं वे पौरुषेय ही हैं, जैसे नये बनाये हुए कूप महल
आदिकी रचनाके समान पुराने कप महल आदि होते हैं तो उनको पुरुषकृत ही मानते हैं वैदिक शब्द मनुष्यों द्वारा रचे हुए शब्दोंके समान ही हैं अतः पौरुषेय हैं।
यह नर रचित वचन समानत्व हेतु ( मनुष्य द्वारा रचित शब्दके समान हो वेदके शब्द हैं ) आश्रय प्रसिद्ध दोष युक्त भी नहीं है, क्योंकि वैदिक शब्दोंकी रचना मनुष्य रचित शब्दके समान प्रत्यक्षसे ही प्रतीत होती है। इस हेतुका पक्ष अप्रसिद्ध विशेषणवाला भी नहीं है, सपक्ष-नवीन कूप महल आदिमें पुरुषकृतपना देखा जाता ही है । अतः साध्यका पौरुषेय विषेषण सुप्रसिद्ध ही है, हेतुका स्वरूप भी असिद्ध नहीं है अर्थात् मनुष्य रचित शब्दोंके स्वरूपके समान ही वैदिक शब्दोंका स्वरूप है, उन शब्दोंकी विशेषता बतलानेवाला कोई प्रमाण भी नहीं है जिससे कि वैदिक शब्दोंकी विशेषता सिद्ध हो जाय ।
_वैदिक शब्दोंमें अप्रामाण्यका अभाव है अतः लौकिक शब्दोंसे वैदिक शब्दोंमें विशेषता मानी जाती है ऐसा भी नहीं कहना, वैदिक शब्दोंमें अप्रामाण्यका अभाव भले ही पाया जाता हो किन्तु उससे पौरुषेयत्व नहीं हटाया जा सकता अर्थात् अप्रामाण्यका अभाव वेदको अपौरुषेय सिद्ध कर देवे सो शक्ति उसमें नहीं है। जिसके द्वारा वेदके शब्दोंका पौरुषेयत्व निराकरण किया जाय ऐसी कोई विशेषता उन शब्दोंमें नहीं है अतः
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org