Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
जलपात्रेषु चैकेन नानैकः सवितेक्ष्यते । युगपन्न च भेदेस्य प्रमाणं तुल्यवेदनात् ||३||”
कश्चिदाह-न तत्र सवितेक्ष्यते तस्य नभसि व्यवस्थानात्, तन्निमित्तानि तु तेषु प्रतिबिम्बानि प्रतीयन्ते ततो नानेकान्तः ।
[ मी० श्लो० शब्दनि० श्लो० १७६ - १७८ ]
एतत्कुमारिलः परिहरन्नाह
"हैकेन निमित्तेन प्रतिपात्रम् पृथक् पृथक् । भिन्नानि प्रतिबिम्बानि गृह्यन्ते युगपन्मया ॥ १॥"
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[ मी० श्लो० शब्दनि० श्लो० १७६ ]
"अत्र ब्रूमो यदा यावज्जले सौर्येण तेजसा । स्फुरता चाक्षुषं तेजः प्रतिस्रोतः प्रवत्तितम् ॥ १ ॥
होकर भी एक साथ एक पुरुष द्वारा अनेक रूप से ग्रहण में प्राता है ? कहा भी हैसूर्य विभिन्न देशों में एक के द्वारा ग्रहण नहीं होता हो सो भी बात नहीं है किन्तु अनेक रूप दिखाई देने मात्र से सूर्य अनेक रूप सिद्ध नहीं होता । सूर्य के भिन्न देशों में उपलब्ध होने रूप हेतु में युगपत् ऐसा विशेषण जोड़ा जाय तो भी वही अनैकान्तिक दोष आता है क्योंकि जल पात्रों में एक साथ एक ही पुरुष द्वारा सूर्य एक होकर भी अनेक दिखायी देता है, किन्तु तुल्य वेदन होने से यह भेद प्रतीति प्रमाणभूत नहीं है ॥३॥
शंका- - जल पात्रों में सूर्य नहीं दिखता है सूर्य तो आकाश में स्थित है, उस सूर्य का निमित्त पाकर उन जल पात्रों में सूर्य के प्रतिबिम्ब नाना रूप प्रतीत होते हैं, . अतः सूर्य के दृष्टांत द्वारा शब्द के नानात्व को व्यभिचरित नहीं कर सकते । कहा है कि एक ही सूर्य का निमित्त लेकर प्रत्येक जलपात्र में पृथक पृथक सूर्य एक साथ मेरे द्वारा ग्रहण किये जाते हैं, ऐसा जो प्रतिभास होता है वह भिन्न भिन्न प्रतिबिम्ब के कारण होता है न कि एक सूर्य के कारण || १ ||
समाधान — इस शंका का निरसन कुमारिल नामा गुरु करते हैं -- जब जल में स्फुरायमान सूर्य तेज के साथ चक्षु तेज नाना रूप परिवर्तित होता है तब वह स्वस्थान
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