Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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शब्दनित्यत्ववादः
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ध्वनीनां भिन्नदेशत्वं श्रुतिस्तत्रानुरुद्धयते । अपूरितान्तरालत्वाद्विच्छेदश्चावसीयते ।।५।। तेषां चाल्पकदेशत्वाच्छब्देप्यऽविभुतामतिः । गतिमद्वे गवत्त्वाभ्यां ते चायान्ति यतो यतः ।।६।। श्रोता ततस्ततः शब्दमायान्तमिव मन्यते ।"
[ मी० श्लो० शब्दनि० श्लो० १७२-१७५ ] अथैकेन भिन्न देशोपलम्भाद् घटादिवन्नानात्वम्; न; आदित्येनानेकान्तात् । दृश्यते ह्य केनादित्यो भिन्नदेशः, न चैतावतासौ नाना । अथ 'युगपदेकेन भिन्न देशोपलब्धेः' इति विशेष्योच्यते; तथाप्यनेनैवानेकान्तः । जलपात्रेषु हि भिन्नदेशेषु सवितंकोप्येकेन युगपद्भिन्नदेशो गृह्यते । उक्तं च
“सूर्यस्य देशभिन्नत्वं न त्वेकेन न गृह्यते । न नाम सर्वथा तावदृष्टस्यानेकदेशता ॥१॥ सविशेषेण हेतुश्चे तथापि व्यभिचारिता । दृश्यते भिन्नदेशोयमित्वेकोपि हि बुद्धयते ।।२।।
अतः शब्दों का सुनाई देना बीच में रुकता है ध्वनियों में देशों का अंतराल पड़ता है इसलिये जहां अंतराल हो वहां श्रवण ज्ञान में विच्छेद हो जाता है ।।५।। व्यञ्जक ध्वनि अल्प स्थान पर रहती है इस कारण से शब्द में भी अव्यापकपने का ज्ञान हो जाया करता है। उन ध्वनियों में गतिपना तथा वेग रहता है अतः जैसी जैसी ध्वनियां निकट पाती हैं वैसे वैसे श्रोता जन समझने लग जाते हैं कि शब्द ही प्रा रहा है ॥६॥
शंका-एक ही पुरुष के द्वारा भिन्न भिन्न देश में शब्द उपलब्ध होता है अतः शब्द घटादि पदार्थोंके समान पृथक पृथक है ?
समाधान-यह कथन सूर्य के साथ अनैकान्तिक होगा, देखा जाता है कि सूर्य एक है किन्तु एक ही पुरुष द्वारा भिन्न भिन्न देश में उपलब्ध होता है किन्तु इतने मात्र से वह नाना ( अनेक ) नहीं होता। कोई परवादी कहे कि सूर्य के साथ होने वाले अनैकान्तिक दोष को हटाने के लिये विशेष्य जोड़ा जायगा कि “एक ही समय में" एक पुरुष द्वारा भिन्न देशों में उपलब्ध होने से शब्द अनेक रूप है ? सो इस विशेष्य होने पर भी उसी सूर्य के साथ व्यभिचार आता है, भिन्न देश रूप अनेक जल सूर्य एक
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