________________
शब्दनित्यत्ववाद:
४७५
तत्रापि तथाभूतप्रत्ययानुवृत्तिमन्तरेण सामान्याभ्युपगमेऽन्यन्निमित्तमुत्पश्यामः । यदि चात्राऽनुगताsबाधिताऽक्षजप्रत्ययविषयत्वे सत्यपि गत्वादेरभावः; तहि गादेरपि व्यावृत्तप्रत्ययविषयस्याभावः स्यात् । तथा च कस्य दर्शनस्य परार्थत्वान्नित्यत्वं साध्येत ?
यच्चोक्तम्-‘सादृश्येन ततोऽर्थाप्रतिपत्तेः' इति; तत्सदृशपरिणामलक्षणसामान्य विशिष्टव्यक्तरर्थप्रतिपादकत्वसमर्थनात्प्रत्युक्तम् ।
यदप्य भिहितम्-सादृश्यादर्थप्रतीतौ भ्रान्तः शाब्दः प्रत्ययः स्यात्; तद्ध मादेरग्न्यादिप्रतिपत्ती समानम्।
यदप्युक्तम्-'गत्वादीनां वाचकत्वं गादिव्यक्तीनां वा' इत्यादिः तत्सामान्य विशिष्टव्यक्तर्वाचकत्वसमर्थनादेव प्रत्युक्तम् ।
नहीं की जाय ? यदि नहीं करते तो शाबलेय आदि में भी गोत्व सामान्य को नहीं मानना चाहिए। क्योंकि गायों में भी अनुगत प्रत्यय के बिना अन्य किसी निमित्त से गोत्व सामान्य की व्यवस्था होती हुई दिखायी नहीं देती। यदि आप मीमांसक गत्व अादि में इन्द्रियों से गम्य, अबाधित ऐसा अनुगताकार प्रत्यय होते हुए भी उन शब्दों में गत्व आदि का अभाव मानते हैं, तो गकार आदि का जो कि व्यावृत्त प्रत्यय का विषय है उसका भी अभाव मानना होगा। इस तरह उसका अभाव सिद्ध होने पर किसका उच्चारण करेंगे तथा “दर्शनस्य परार्थत्वातु" इत्यादि सूत्र द्वारा किस शब्द का नित्यपना साधा जायगा ।
तथा मीमांसक ने कहा था कि वर्गों की सदृशता से अर्थ बोध नहीं होता किन्तु एकत्व से होता है, इत्यादि सो इस विषय का समाधान सदृश परिणाम है लक्षण जिसका ऐसे सामान्य से विशिष्ट व्यक्ति से अर्थ प्रतिपत्ति होती है ऐसा सिद्ध करने से ही हो जाता है, अर्थात् गकार आदि वर्गों में सदृश सामान्य रहता है उसी से पदार्थ का ज्ञान होता है न कि वहीं पहले संकेत काल के सुने हुए शब्द से । आपने कहा था कि संकेत काल के शब्द द्वारा अर्थ बोध न होकर उसके सदृश अन्य शब्द द्वारा अर्थ बोध होगा तो वह ज्ञान भ्रांत कहलायेगा। सो उसका समाधान धूम से होने वाले अग्नि के ज्ञान के दृष्टांत से हो जाता है, जैसे रसोई घर का धूम पर्वत पर नहीं रहता किंतु उसके सदृश रहता है और उस सदृश धूम से होने वाला अग्नि का ज्ञान सत्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org