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शब्दनित्यत्ववादः
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घटादौ सर्वदा' इति च निदर्शनमयुक्तम्; न हि महातेजः सामर्थ्यादल्पोपि घटो 'महान्' इत्यवभासते, किन्त्वत्यन्तस्पष्टतया । द्वितीय विकल्पे तु महत्त्वादिधर्मरहितस्यास्याऽत्यन्तस्पष्टतया ग्रहणं स्यात् । तथा च न व्यञ्जकध्वनिधर्मानुविधायित्वं स्यात् ।
एतेन बुद्धिमन्दत्वेऽल्पता निरस्ता । न खलु मन्दतेजसः प्रकाशिते घटादी महति बुद्धिमन्दत्वेनापत्वप्रतीतिरस्ति । ततो 'महातात्वादिव्यापारे महत्त्वादिधर्मोपेतोऽल्पे चाल्पत्वादिधर्मोपेतः शब्द एवोत्पद्यते ' इत्यभ्युपगन्तव्यम् ।
यदि च तात्वादयो ध्वनयो वास्य व्यञ्जकाः तर्हि तद्वयापारे तद्धर्मोपेतस्यास्य नियमेनोपलब्धिर्न स्यात् । कारकव्यापारो ह्येषः - स्वसन्निधाने नियमेन कार्यसन्निधापनं नाम, न व्यञ्जक व्यापारः । न खलु यत्र यत्र व्यंजकः प्रदीपादिस्तत्र तत्र व्यंगयघटादिसन्निधापनमुपलब्धिर्वा नियम
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महातेज से प्रकाशित हुए घटादि में वह बुद्धि पटु होती है ऐसा जो दृष्टांत दिया वह प्रयुक्त है, क्योंकि महान प्रकाश के सामर्थ्य से छोटा घट महान रूप से प्रतिभासित नहीं होता किन्तु अत्यंत स्पष्ट रूप से प्रतिभास होता है । दूसरा विकल्प – जैसी वस्तु है वैसा अत्यंत स्पष्ट रूप से जानना बुद्धि की तीव्रता है, ऐसा कहो तो महत्व आदि धर्म से रहित अत्यन्त स्पष्ट रूप से घट का ग्रहण होना ही सिद्ध होता है, फिर उदात्तादि धर्म व्यंजक ध्वनि के अनुविधायी होते हैं ऐसा कहना असत्य ही ठहरता है । इसी तरह बुद्धि की मंदता से घट में अल्पता आती है ऐसा कहना भी खण्डित हुआ समझना चाहिए | क्योंकि मंद प्रकाश से प्रकाशित हुए महान घटादि में बुद्धि के मंद होते मात्र से अल्पता की प्रतीति नहीं होती है, इससे निश्चय होता है कि तालु कंठ आदि का महा व्यापार ( जोर जोर से पूरा मुख खोलके बोलना इत्यादि रूप व्यापार ) होने पर महान शब्द उत्पन्न होता है, और अल्प व्यापार के होने पर अल्प धर्म युक्त शब्द उत्पन्न होता है । यदि मीमांसक तालु आदि को या ध्वनियों को शब्द का व्यंजक कारण मानते हैं तो उस व्यापार के होने पर उदात्त प्रादि धर्म युक्त शब्द की नियम से उपलब्धि होना सिद्ध नहीं होता, क्योंकि यह काम तो कारक व्यापार का है, जो कि अपने निकट रहने पर नियम से कार्य की सन्निधि कर देता है । व्यंजक व्यापार नहीं कर सकता, जहां जहां व्यंजक (प्रगट करने उत्पन्न करने वाले को कारक कहते हैं ) दीपकादि है वहां वहां उनकी उपलब्धि या निकटता होती ही है ऐसा नियम नहीं है,
किन्तु इस कार्य को
वाले को व्यंजक और
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व्यंग्य जो घटादि हैं
यदि ऐसा होता तो
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