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शब्दनित्यत्ववादः
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तदप्यसमीक्षिताभिधानम्, अभिन्न देशेऽभिन्नेन्द्रियग्राह्य चावार्ये प्राव रणभेदस्याभिव्यंजक भेदस्य चाऽप्रतीतेः। न खलु घटशरावोदञ्चनादीनां तथाविधानामावरणव्यंजकभेदो दृष्टः, काण्डपटादेरेकस्यैवावरणत्वस्य प्रदीपादेश्चैकस्यैवाभिव्यंजकत्वस्य प्रसिद्धः। तथा च प्रयोगः-शब्दाः प्रतिनियतावरणावार्याः प्रतिनियतव्यंजकव्यंग्या वा न भवन्ति, समानदेशकेन्द्रियग्राह्यत्वाद्, घटादिवत् । न
है । सामर्थ्य भेद तो सर्वत्र ही है, चाहे प्रयत्न के अनंतर शब्दका उत्पन्न होना रूप पक्ष ग्रहण करे चाहे विवक्षा के अनंतर शब्दका अभिव्यक्त होना रूप पक्ष ग्रहण करे सामर्थ्य का भेद तो इष्ट ही है। अर्थात् प्रयत्न के अनंतर शब्द उत्पन्न होते हुए भी हर कोई प्रयत्न से ( तालु आदि के व्यापार से ) हर कोई शब्द उत्पन्न नहीं होता क्योंकि प्रयत्न में पृथक् पृथक् सामर्थ्य होती है ऐसा जैन कहते हैं और व्यंजक ध्वनिसे शब्दका संस्कार होकर शब्द व्यक्त होता है तो भी हर कोई ध्वनि से हर कोई शब्द संस्कार नहीं होता क्योंकि ध्वनि आदि में पृथक् पृथक् सामर्थ्य होती हैं ऐसा मीमांसक मानते हैं ॥४॥ इत्यादि
जैन- यह प्रतिपादन बिना सोचे किया गया है, क्योंकि अभिन्न देश में होने वाले एवं अभिन्न इन्द्रिय ( कर्णेन्द्रिय द्वारा ) ग्राह्य होने वाले आवार्य में ( शब्द में ) आवरण का भेद और अभिव्यंजक का भेद प्रतीत नहीं होता। क्योंकि उक्त प्रकार के घट, शराव, उदंचन ( पानी सींचने का पात्र विशेष ) आदि के आवरण एवं व्यंजक में भेद नहीं देखा जाता है अपितु एक ही वस्त्र आदि रूप आवरण देखा जाता है तथा दीपकादि एक ही व्यंजक देखा जाता है अर्थात् आवार्य रूप घटादि का आवरण एक वस्त्रादि से हो जाता है उनके लिये प्रत्येक में पृथक आवरण की जरूरत नहीं पड़ती, तथा एक ही दीपक रूप व्यंजक उन घटादि की अभिव्यक्ति कर देता है उनके लिये प्रत्येक में पृथक् पृथक् दीपक की जरूरत नहीं पड़ती। अनुमान प्रमाण से सिद्ध होता है कि - शब्द प्रतिनियत आवरण द्वारा प्रावार्य नहीं होते एवं प्रतिनियत व्यंजक द्वारा व्यंग्य नहीं होते, क्योंकि समान देश और एक ही इन्द्रिय द्वारा ग्राह्य हैं जैसे घटादिक हैं। आप मीमांसक पावार्य भूत वर्गों में देश भेद भी स्त्रोकार नहीं कर सकते यदि करेंगे तो उनमें व्यापकपने का अभाव हो जायगा। देश भेद तो उन पदार्थों में पाया जाता है जो परस्पर के देश का परिहार करके अवस्थित रहते हैं जैसे गो और हाथी में देश भेद पाया जाता है। इस अनुमान प्रमाण द्वारा शब्द के प्रावरण का भेद मानना प्रसिद्ध होता है, इसलिये आवरणके भेद से शब्द के जाति में भेद की कल्पना तथा उस
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