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प्रमेयकमल मार्तण्डे यच्चोक्तम्-'जलपात्रेषु च' इत्यादि; तदप्यसाम्प्रतम्; तत्रोपलभ्यमानस्यादित्यप्रतिबिम्बस्याने. कत्वात् । 'गगनतलावलम्बी हि सविता तत्रोपलभ्यते' इत्यत्र न प्रत्यक्षं प्रमाणं तत्स्वरूपाप्रतिभासनात् । तस्य हि स्वरूपं गगनतलावलम्बि चैकं च, तन्नावभासते। यच्चावभासि जलपात्रावलम्बि चानेकं च, तद्वृक्षच्छायादिवद्वस्त्वन्तरमेव । न चान्यप्रतिभासेऽन्यप्रतिभासो नामाऽतिप्रसंगात्। न च जलभानोर्गगनभानुना सादृश्यादेकत्वम्; कमनीयकामिनीनयनयोरपि तत्प्रसंगात् । नापि तद्विकारे जलभानुविकारादेकत्वम्; वृक्षच्छाययोरपि तत्प्रसंगात् ।
___ ननु तत्र तत्प्रतिबिम्बानां वस्त्वन्तरत्वे कुतः प्रादुर्भावः स्यादिति चेत् ? जलादित्यादिलक्षणस्वसामग्रौविशेषात् । तर्हि स्वच्छताविशेषसद्भावाज्जलादर्शादयो मुखादित्यादिप्रतिबिम्बाकारविकार
मीमांसक ने पहले कहा था कि-सूर्य के एक रहते हुए भी जल पात्रों में नाना रूप दिखायी देता है वैसे वर्ण एक होकर नाना प्रतीत होते हैं इत्यादि सो वह कथन अनुचित है जल पात्रों में जो सूर्य का प्रतिबिम्ब उपलब्ध होता है वह अनेक ही है, क्योंकि उन पात्रों में आकाशस्थित सूर्य उपलब्ध होता है ऐसा मानना प्रत्यक्ष प्रमाण रूप नहीं है अर्थात् ऐसा प्रत्यक्ष से प्रतीत होना कहो तो वह प्रामाणिक नहीं, क्योंकि उसमें सूर्यका स्वरूप प्रतिभासित हो नहीं होता। सूर्यका स्वरूप तो गगनतल में अवलंबित एवं एक रूप रहना है वह स्वरूप जल पात्रों में तो है नहीं । और जो यहां प्रतीत हो रहा वह जल पात्रों में अवलंबित एवं अनेक रूप है, अतः यह जल पात्रावलंबी प्रतिबिम्ब सूर्य से अन्य कोई वस्तु रूप ही है जैसे कि वृक्षकी छाया वृक्ष से अन्य किसी वस्तु रूप है । अन्य के प्रतिभास में किसी अन्य का प्रतिभास मानना तो अतिप्रसंग का कारण होगा। जल में स्थित सूर्य में और आकाश में स्थित सूर्य में सदृशता होने से एकपना है ऐसा कहना भी प्रयुक्त है, यदि सदृशता होने के कारण एकपना माना जाय तो किसी सुन्दर ललना के दो नेत्रोंको भी एक मानना पड़ेगा। यदि कहा जाय कि आकाश स्थित सूर्य में विकार आने पर ( मेघादिका आवरण आने पर ) जल में स्थित सूर्य बिंब में भी विकार आता है अतः इन दोनों को एक मानना चाहिए, सो यह भी गलत है क्योंकि इस तरह माने तो वृक्ष और छाया में भी एकत्व मानना होगा। क्योंकि वृक्ष में हिलना आदि विकार आने पर छाया में भी विकार तो आता ही है ।
शंका-जल पात्रों में स्थित सूर्य के प्रतिबिम्बों को सूर्य से पृथक् वस्तु रूप मानते हैं तो उनका प्रादुर्भाव किससे होगा ?
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