Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
प्रमेय कमल मार्त्तण्डे
प्राप्त हो ? अर्थात् यह असंभव है इसी प्रकार एक ही शब्द सर्वत्र देश में व्याप्त है तो एक व्यक्ति को एक स्थान पर सर्वांगरूप से कैसे सुनायी दे सकता है ? अर्थात् नहीं दे सकता, शब्द जब नित्य है तो उसमें संकेत होने पर सभी को उससे अर्थ बोध होना चाहिए इस तरह कोई भी पुरुष किसी भी भाषा का अनभिज्ञ नहीं रहेगा । इत्यादि प्रश्नों का सही उत्तर मीमांसक दे नहीं सकते । अतः निष्कर्ष यह है कि शब्द पुद्गल द्रव्य की पर्याय है अर्थात् एक जड़ पदार्थ की अवस्था विशेष है और वह मिट्टी की एक अवस्था विशेष जो घट है उसके समान अपने निमित्त कारण के मिलने पर प्रादुर्भूत होती है, अर्थात् शब्द का उपादान तो भाषावर्गणारूप पुद्गल द्रव्य है और निमित्त अनेकों हैं ( तालु श्रादि का व्यापार ) इस शब्द के अक्षरात्मक, अनक्षरात्मक, तत, वितत, घन, सुषिर निमित्त कारण भी अनेक हैं । यहां प्रकरण में तो व्यापार से उत्पन्न हुए शब्दों का वर्णन है । अस्तु |
५२०
Jain Education International
भाषात्मक, अभाषात्मक,
आदि अनेक प्रभेद हैं और इनके केवल मनुष्य के तालु आदि के
|| शब्दनित्यत्ववाद समाप्त ।।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org